रविवार, 4 नवंबर 2018

ट्वेंटी-ट्वेंटी का सेमीफाइनल उर्फ ट्रम्प की पहली परीक्षा

इस हफ्ते 6 नवंबर को अमेरिकी संसद के मध्यावधि चुनाव हो रहे हैं। ट्रम्प की जीत के बाद से अमेरिका में जिस तरह का ध्रुवीकरण हुआ है, उसे देखते हुए ये चुनाव खासे महत्वपूर्ण हैं। अमेरिकी संसद के दो सदन हैं। हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स में 435 सदस्य होते हैं। और दूसरा है, सीनेट। इसमें 100 सदस्य होते हैं। सीनेट की चक्रीय व्यवस्था के तहत इस बार 35 (33+2) सीटों पर चुनाव होंगे। दोनों सदनों में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है।

मध्यावधि चुनावों के बाद भी रिपब्लिकन-बहुमत बरकरार रहा, तो ट्रम्प की तूती बोलेगी। ऐसा नहीं हुआ और दोनों या किसी भी एक सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत हो गया, तो ट्रम्प के उलटी गिनती शुरू हो जाएगी। नीति और राजनीति के नजरिए से ओबामाकेयर जैसे सामाजिक कल्याण के कल्याण के कार्यक्रमों को खत्म करना संभव नहीं होगा। आप्रवासियों के खिलाफ ट्रम्प की कड़ी नीतियों पर अंकुश लगेगा। हालांकि वोट उम्मीदवारों की योग्यता और स्थानीय मुद्दों पर भी पड़ते हैं, पर ट्रम्प की कार्यशैली पर भी यह जनमत होगा।


संसद पर किसी भी दल का कब्जा हो, इससे भारत-अमेरिका रिश्तों पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। भारत के दोनों पार्टियों के साथ रिश्ते अच्छे रहे हैं। यों भी अंतरराष्ट्रीय मामलों में अमेरिकी नीतियाँ अपेक्षाकृत स्थिर रहती हैं। पर ट्रम्प की कार्यशैली और नीतियाँ अप्रत्याशित होती हैं। सामान्यतः अमेरिकी राष्ट्रपति विदेश नीति को लेकर विशेषज्ञों से सलाह मशविरा करते हैं, पर ट्रम्प का पता नहीं किससे विचार-विमर्श करते हैं। अचानक किसी सुबह वे बड़ी घोषणा कर देते हैं। वह भी ट्वीट पर।

दबाव में रिपब्लिकन

कहना मुश्किल है कि कौन पार्टी जीतेगी। अलबत्ता ओपीनियन पोल बता रहे हैं कि डेमोक्रेट्स आगे हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल/एनबीसी के पोल के अनुसार 50 फीसदी वोटर डेमोक्रेट्स का समर्थन कर रहे हैं और 41 फीसदी रिपब्लिकन का। रजिस्टर्ड वोटरों में डेमोक्रेट्स की संख्या बढ़ रही है। दूसरी तरफ डेमोक्रेट वोटरों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है 35 में डेमोक्रेटिक पार्टी के 26 सदस्यों को जिताना ही है साथ ही दो और सदस्यों को सदन में भेजना है ताकि पार्टी का बहुमत हो। रिपब्लिकन पार्टी के केवल 9 सदस्यों को अपनी सदस्यता बचानी है। मिड-टर्म चुनाव की दूसरी विडंबना यह है कि इन चुनावों में वोट कम पड़ता है। जहाँ 60 फीसदी वोटर राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालते हैं वहीं 40 फीसदी इस चुनाव में मतदान करते हैं। फिर भी माना जा रहा है कि डेमोक्रेट इन चुनावों में बड़ी जीत हासिल कर लें, तो हैरत नहीं होगी। दोनों सदनों में डेमोक्रेट बहुमत हो गया, तो ट्रम्प के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। उनकी सरकार के कई फैसले रोके जा सकते हैं। उनके खिलाफ महाभियोग लाना भी सम्भव है। इसलिए इन चुनावों के राजनीतिक निहितार्थ को मामूली मानकर नहीं चलना चाहिए।

ईसाइयों से अपील

भारत के साथ अमेरिका की तुलना करें, तो कई बार अद्भुत साम्य मिलता है। इस चुनाव के अंदेशे में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अगस्त में ईसाई नेताओं के साथ ह्वाइट हाउस में व्यक्तिगत बैठक की। इसमें उन्होंने चेतावनी दी कि मध्यावधि चुनाव में अगर रिपब्लिकन हारे, तो देश में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा भड़केगी। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस मीटिंग की ऑडियो रिकॉर्डिंग जारी के। दो पूर्व सहयोगियों के वित्तीय मामलों में फंसने के बाद ट्रम्प ने धार्मिक मुद्दे भी उठाना शुरू कर दिया है।

अमेरिकी मीडिया की ओर से जारी इस ऑडियो में ट्रम्प धार्मिक नेताओं को उकसा रहे हैं। उन्होंने नेताओं से कहा, ‘‘मैं आपसे सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि आप बाहर जाएं और यह सुनिश्चित करें कि आपके लोग वोट डालें। 6 नवंबर को वोटिंग होगी। अगर वे मतदान नहीं करेंगे, तो हमें तकलीफदेह दो साल बिताने होंगे और यह काफी मुश्किल वक्त होगा। आपको अब तक जो कुछ मिला है, उसे खोने के लिए आप सिर्फ एक चुनाव दूर हैं।’’

ट्रम्प-विरोधियों को पार्सल बम

चुनाव अभियान का एक और विद्रूप तब सामने आया, जब खबरें मिलीं कि ट्रम्प के आलोचकों के घर और दफ्तरों में अक्तूबर के चौथे सप्ताह में पार्सल से बम भेजे गए। मध्यावधि चुनाव से सिर्फ दो हफ्ते पहले के इस घटनाक्रम को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपने भय को व्यक्त किया है। दुनियाभर में सनसनी है। यह हो क्या रहा है? जिन नेताओं को बम भेजे गए उनमें पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और बिल-हिलेरी क्लिंटन समेत 7 डेमोक्रेट्स शामिल हैं। ओबामा और क्लिंटन के घर भेजा गया पार्सल खुफिया विभाग ने डिलीवर होने से पहले ही अपने कब्जे में ले लिया था।

पैकेज पर भेजने वाले के नाम की जगह डेमोक्रेट पार्टी की नेशनल कमेटी की पूर्व अध्यक्ष डेबी शुल्ज का नाम है। ज़ाहिर है कि यह नाम भ्रम पैदा करने के लिए डाला गया होगा। जिन लोगों के घर पर बम भेजे गए, वे सभी कभी न कभी ट्रम्प से पंगा ले चुके हैं। ट्रम्प-समर्थकों का कहना है कि यह डेमोक्रेट्स की साजिश है, क्योंकि वे मध्यावधि चुनाव से पहले जनता की सहानुभूति पाना चाहते हैं। कोई भी पार्सल-बम फटा नहीं, पर इससे डर जरूर पैदा हुआ।  

नेताओं के अलावा न्यूज चैनल सीएनएन के ऑफिस में भी पार्सल बम भेजा गया, जिसके कारण पूरे दफ्तर को खाली कराया गया। ट्रम्प और मीडिया के रिश्ते शुरू से ही खराब हैं। बम प्रकरण के बाद ट्रम्प ने विस्कॉन्सिन में हुई एक रैली में दोषियों को पकड़ने और कड़ी सजा देने की बात कही। साथ ही यह भी कहा कि मीडिया मेरा विरोध करना बंद करे।

मुसलमान-विरोधी प्रचार

चुनाव-प्रचार के दौरान इस्लाम-विरोधी भावनाओं का भी खूब प्रचार किया गया। इस आशय के टीवी विज्ञापन सामने आए हैं, जिनमें डेमोक्रेटिक प्रत्याशियों को आतंकवाद के समर्थक बताया गया। मुस्लिम एडवोकेट्स नाम के एक सिविल राइट्स ग्रुप ने अपनी एक रिपोर्ट में मुसलमान-विरोधी प्रचार के 80 मामलों का विवरण दिया है। इनमें से 71 मामले रिपब्लिकन पार्टी से जुड़े हैं।


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