मंगलवार, 8 जनवरी 2019

शेख हसीना की मजबूती भारत के लिए अच्छी खबर


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बांग्लादेश में जो चुनाव परिणाम आए हैं, उनके बारे में किसी ने नहीं सोचा था। अवामी लीग के नेतृत्व में बने महाजोट (ग्रैंड एलायंस) को 300 में से 288 सीटें मिली हैं और विरोधी दलों के गठबंधन को केवल सात। विरोधी दलों ने चुनाव में धाँधली का आरोप लगाया है और दुबारा चुनाव की माँग की है, पर अब इन बातों का कोई मतलब नहीं है। उन्हें विचार करना होगा कि ऐसे परिणाम क्यों आए और उनकी भावी रणनीति क्या हो। मुख्य विरोधी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने 2014 के चुनावों का बहिष्कार करके जो गलती की थी, उसका भी यह परिणाम है।

विरोधियों की नेतृत्व-विहीनता भी इन परिणामों में झलक रही है। बीएनपी की मुख्य नेता जेल में है और उनका बेटा देश के बाहर है। पार्टी पूरी तरह बिखरी हुई है। चुनाव परिणामों के एकतरफा होने का सबसे बड़ा प्रमाण प्रधानमंत्री हसीना के क्षेत्र दक्षिण पश्चिम गोपालगंज में देखा जा सकता है, जहाँ शेख हसीना ने दो लाख 29 हजार 539 वोटों से जीत दर्ज की है। उनके विरोधी बीएनपी के उम्मीदवार को मात्र 123 वोट मिले। उसका मतलब है कि देश में रुझान इस वक्त एकतरफा है। यह बात राजनीतिक दृष्टि से खराब भी है। इसके कारण सत्ता के निरंकुश होने का खतरा बढ़ता है।


हसीना की दृढ़ता

शेख हसीना के शासन पर निरंकुश होने के आरोप लगे भी हैं। दूसरी तरफ विरोधी दलों को अपने निरर्थक हो जाने के कारणों पर भी विचार करना चाहिए। केवल नेतृत्व विहीनता का सवाल नहीं है। विरोधी गठबंधन ने अपने नेता के रूप में डॉ कमाल हुसेन को खड़ा किया था, जो बहुत सम्मानित व्यक्ति हैं। बांग्लादेश की स्वतंत्रता और उसके बाद व्यवस्था-निर्धारण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। शेख हसीना के पिछले दस वर्षों के दौरान निरंकुश शासन के उदाहरण जरूर मिलते हैं, पर यह भी सच है कि उनके नेतृत्व में देश ने न केवल आर्थिक प्रगति की राह पकड़ी है, बल्कि समूची व्यवस्था सुगठित रूप ग्रहण करती जा रही है।

राजनीतिक दृष्टि से शेख हसीना ने दो महत्वपूर्ण काम किए हैं। एक, जमाते-इस्लामी की रीढ़ तोड़कर रख दी है। दूसरे, भ्रष्टाचार पर हमला बोला है। बीएनपी की नेता खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के कारण जेल जाना पड़ा है, और अब वे देश की राजनीति के लिए निरर्थक हो चुकी हैं। उन्होंने सत्तारूढ़ होने के लिए जमाते-इस्लामी का सहारा लिया था, जिसके कारण कट्टरपंथी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिला था। जमाते-इस्लामी पर पाबंदियाँ होने के बावजूद बीएनपी ने उसके सदस्यों को जगह दी है। बीएनपी ने अवामी लीग के असंतुष्ट सदस्यों को भी अपने साथ लिया था। पर यह रणनीति कारगर नहीं हुई। बीएनपी को यदि वापसी करनी है, तो उसे बांग्लादेश के भविष्य की कोई सकारात्मक रूपरेखा लेकर सामने आना होगा।

आतंकी हिंसा

भारत की तरह बांग्लादेश भी एक अरसे से आतंकी हिंसा का शिकार है। जुलाई 2016 में ढाका के मशहूर होली आर्टिसन बेकरी कैफे में आतंकियों ने 20 लोगों की हत्या कर दी। इससे पूरे देश में आतंक और गुस्से की लहर फैल गई। इसके पहले देश में ब्लॉगरों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो रहीं थीं। इन सबके समांतर देश की अदालतों में सन 1971 के स्वतंत्रता आंदोलन में पाकिस्तानी सेना का साथ देने के आरोप में कुछ लोगों को फाँसी की सजाएं सुनाई गईं। इनके विरोध में जमाते-इस्लामी के कार्यकर्ताओं ने हंगामा शुरू किया। उस मौके पर शेख हसीना की सरकार ने सख्त रुख अपनाया। इस चुनाव से साबित होता है कि जनता ने उस रुख का समर्थन किया है।

शेख हसीना के कार्यकाल में भारत के साथ रिश्तों में जमीन-आसमान का फर्क आया है। इस मामले में खासतौर से दो महत्वपूर्ण समझौतों का उल्लेख किया जाना चाहिए। जुलाई 2014 में भारत और बांग्लादेश के बीच तकरीबन चार दशक से चले आ रहे समुद्री सीमा विवाद के खत्म हो जाने के बाद इस बात पर रोशनी पड़ी कि इस क्षेत्र में आर्थिक विकास के लिए विवादों का निपटारा कितना जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र के हेग स्थित न्यायाधिकरण ने तकरीबन 25,000 वर्ग किलोमीटर के विवादित समुद्री क्षेत्र में से 20,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर बांग्लादेश का क्षेत्राधिकार स्वीकार किया।

दोनों के लिए वरदान

दोनों देशों ने इस निपटारे को न केवल स्वीकार किया, बल्कि इसे ‘लूज़-लूज़’ के बजाय ’विन-विन’ स्थिति माना। यह समझौता होने के बाद दोनों देश समुद्र तल से पेट्रोलियम और गैस के दोहन का काम कर सकेंगे। इसी तरह दोनों देशों के बीच 31 जुलाई 2015 को दोनों देशों के बीच 162 एनक्लेव की अदला-बदली का समझौता प्रभावी हो गया। भारत ने जहां 51 एनक्लेव बांग्लादेश को हस्तांतरित किए, वहीं 111 एनक्लेव भारत को मिले। सन 1974 के इंदिरा-गांधी शेख मुजीब समझौते में इस दोष को दूर करने पर सहमति हो गई थी। बांग्लादेश की संसद ने इसकी तभी पुष्टि कर दी थी, पर भारतीय संसद से इसकी पुष्टि होने में इतना समय लगा।

भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग और समन्वय लगातार बढ़ता जा रहा है। सन 2012 में  बांग्लादेशी सेना के कुछ अधिकारियों ने शेख हसीना की सरकार के तख्ता-पलट की साजिश की थी, जो विफल कर दी गई। इस साजिश की जानकारी भारत के खुफिया संगठनों ने बांग्लादेश को दी थी। उधर भारत के पूर्वोत्तर के इलाकों में पाकिस्तानी खुफिया संगठन आईएसआई की हरकतों को काबू में रखने में बांग्लादेश की मदद भारत के लिए उपयोगी साबित हो रही है।

इसबार के चुनाव परिणाम कुल मिलाकर भारत के लिए सकारात्मक साबित होंगे। हालांकि शेख खालिदा जिया के दौर में बांग्लादेश की सरकार के भारत के साथ रिश्ते बहुत सौहार्दपूर्ण नहीं थे, पर हाल में बीएनपी के रुख में भी बदलाव आया है। बीएनपी के प्रभावशाली होने से भारत को चिंता नहीं होती। भारतीय चिंता जमाते-इस्लामी के प्रभावशाली होने पर होती है, जिसका रुख हमेशा भारत-विरोधी रहा है।



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