शनिवार, 29 दिसंबर 2018

भारतीय नज़रिए से महत्वपूर्ण हैं बांग्लादेश के चुनाव


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इस साल नेपाल, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और मालदीव में हुए चुनावों के बाद इस हफ्ते बांग्लादेश की संसद के चुनाव होने जा रहे हैं। मतदाता 30 दिसम्बर को 350 सदस्यों वाली 11वीं संसद के सदस्यों को चुनेंगे। इन सदस्यों में से 300 सीधे फर्स्ट पास्ट द पोस्ट की पद्धति से चुने जाएंगे। 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, जिनका चुनाव पार्टियों को प्राप्त वोटों के अनुपात में किया जाएगा। बांग्लादेश हमारे उन पड़ोसी देशों में से एक है, जिनके साथ हमारे रिश्ते पिछले एक दशक से अच्छे चल रहे हैं। इसकी बड़ी वजह शेख हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग की सरकार है।

अवामी लीग की सरकार ने भारत के पूर्वोत्तर में चल रही देश-विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने में काफी मदद की है। दूसरी तरफ भारत ने भी शेख हसीना के खिलाफ हो रही साजिशों को उजागर करने और उन्हें रोकने में मदद की है। शायद इन्हीं कारणों से जब 2014 के चुनाव हो रहे थे, तब भारत ने उन चुनावों में दिलचस्पी दिखाई थी और हमारी तत्कालीन विदेश सचिव सुजाता सिंह ढाका गईं थीं। उस चुनाव में खालिदा जिया के मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव का बहिष्कार किया था। इस वजह से दुनिया के कई देश उस चुनाव की आलोचना कर रहे थे।


उस समय भारत ने उस चुनाव का समर्थन किया था। शायद इसलिए कि बांग्लादेश में अस्थिरता का भारत पर असर पड़ता है। पर उस दौरान खड़े हुए विवादों से सबक लेकर भारत ने इसबार ऐसा कोई प्रयास नहीं किया, जिससे लगे कि हम उनकी चुनाव-व्यवस्था में हस्तक्षेप कर रहे हैं। इसबार चुनाव में बीएनपी की भागीदारी भी है। चुनाव परिणामों को लेकर हालांकि कयास हैं, पर माना जा रहा है कि अवामी लीग का पलड़ा भारी है। इसकी दो वजहें हैं। एक तो बीएनपी की नेता खालिदा जिया को सज़ा होने की वजह से उनकी पार्टी का संगठन कमजोर है। दूसरे अवामी लीग सरकार के नेतृत्व में बांग्लादेश ने आर्थिक मोर्चे पर अच्छी प्रगति की है। अवामी लीग को देश करीब 10 फीसदी अल्पसंख्यकों का समर्थन भी हासिल है। अलबत्ता लगातार दस साल के शासन के कारण कहीं न कहीं एंटी इनकम्बैंसी भी है।

भारत की तरह बांग्लादेश में भी मुख्य विरोधी दलों का गठबंधन चुनाव मैदान में है। इसका नाम है जातीय ओइक्य (या एक्य) फ्रंट। बीएनपी इसकी मुख्य पार्टी है। देश में पिछले चुनाव सन 2014 में हुए थे। तब खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव का बहिष्कार किया था, जिसके कारण 154 सीटों पर चुनाव ही नहीं हुआ। इन 154 में से 127 पर अवामी लीग के प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए। शेष निर्विरोध जीते प्रत्याशियों में रोशन इरशाद के नेतृत्व वाली जातीय पार्टी को 20, जातीय समाजतांत्रिक दल (जेएसडी) को 3, वर्कर्स पार्टी को 2 और जातीय पार्टी (मंजु) को एक सीट मिली। शेख हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग को शेष 147 में से 139 सीटों के परिणाम घोषित किए गए। इनमें अवामी लीग को 105, जातीय पार्टी को 13, वर्कर्स पार्टी को चार, जेएसडी को दो और तरीकत फेडरेशन और बांग्लादेश नेशनलिस्ट फ्रंट (बीएनएफ) को एक-एक सीट मिली। शेष आठ सीटों पर चुनाव हिंसा के कारण स्थगित कर दिए गए। नव-निर्वाचित सदस्यों ने 9 जनवरी, 2014 को शपथ ली।

जुलाई 2017 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने कहा कि यदि संसद को भंग करके निष्पक्ष सदस्यों का चुनाव आयोग बनाया जाए, तो हम संसद के आगामी चुनावों में भाग ले सकते हैं। इसके बाद 14 सितम्बर को पार्टी ने घोषणा की कि हम चुनाव में उतरेंगे। इस चुनाव में बीएनपी 20 दलों के जातीय एक्य फ्रंट का हिस्सा है, जिसके नेता हैं कमाल हुसेन। अभी स्पष्ट नहीं है कि खालिदा जिया की स्थिति क्या होगी। पिछले साल अगस्त में जातीय पार्टी (इरशाद) के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति हुसेन इरशाद ने अवामी लीग-नीत गठबंधन से अलग होने की घोषणा की थी, पर अब वे फिर से वापस इस गठबंधन में लौट आए हैं।  
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