मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

चीन-अमेरिका कारोबारी-जंग में फौरी विराम



ब्यूनस आयर्स में हुआ जी-20 शिखर सम्मेलन भविष्य के लिए कुछ महत्वपूर्ण छोड़कर गया है। सम्मेलन के हाशिए पर हुई वार्ताओं के कारण अमेरिका और चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध में फिलहाल कुछ समय के लिए विराम लगा है। दूसरी तरह अमेरिका वैश्वीकरण के रास्ते को छोड़कर अपने राष्ट्रीय हितों की ओर उन्मुख हुआ है। उसकी दिलचस्पी पर्यावरण संरक्षण, शरणार्थियों तथा रोजगार की तलाश में प्रवास पर निकलने वालों को अपने यहाँ जगह देने में नहीं है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का इस्तेमाल वह अपने लिए करने पर जोर दे रहा है।

इस वक्त दुनिया की निगाहें चीन और अमेरिका के आर्थिक-संग्राम पर हैं, क्योंकि उनका असर बाकी इलाकों पर भी पड़ेगा। जी-20 शिखर सम्मेलन के हाशिए पर अमेरिका और चीन के राष्ट्रपतियों की मुलाकात के बाद यह साफ है कि चीन दबाव में है। अमेरिका ने घोषणा कर रखी थी कि 1 जनवरी, 2019 से चीन के करीब 200 अरब डॉलर के माल पर टैरिफ बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया जाएगा। डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि फिलहाल हम अपने इस कदम को रोक रहे हैं। दूसरी तरफ चीन बड़ी मात्रा में अमेरिका से खेती, ऊर्जा, औद्योगिक और दूसरे इस्तेमाल के उत्पाद खरीदने को तैयार हो गया है। दोनों देशों के बीच तकनीकी हस्तांतरण, बौद्धिक सम्पदा, नॉन टैरिफ अवरोधों और कृषि उत्पादों से जुड़े मसलों पर बातचीत का नया दौर शुरू होगा।
चीन और अमेरिका के इस टकराव के अनेक पहलू भारत से भी जुड़ते हैं। खासतौर से व्यापार के क्षेत्र में। इस साल जब अमेरिका ने चीनी माल पर टैरिफ लगाना शुरू किया, तो चीन ने दूसरे देशों के साथ व्यापार के रास्ते खोजने शुरू किए हैं। चीन के साथ भारत का व्यापार बढ़ रहा है, पर इसमें घाटा ज्यादा है। 2016-17 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 51.1 अरब डॉलर था, जो 2017-18 में बढ़कर 62.9 अरब डॉलर हो गया।
भारत सूती धागे, परिधान और उनसे बनी सामग्री के मामले में चीन से कहीं ज्यादा प्रतिस्पर्धी है। पर चीन अपने बाजार में भारत को प्रवेश करने नहीं देता है। वियतनाम, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और कंबोडिया को चीन के बाजार में शुल्क मुक्त अपना सामान मिलने की इजाजत मिली हुई है, जबकि भारतीय यार्न, फैब्रिक और मेडअप पर चीन में 10 से 14 फीसदी तक आयात शुल्क लगता है। इस साल अप्रैल में वुहान में हुई शिखर-वार्ता के बाद चीन ने भारतीय फार्मास्युटिकल्स के आयात का रास्ता खोला है। यह सब इसलिए हुआ है, क्योंकि उसपर अमेरिका का दबाव है। यह दबाव अभी और बढ़ेगा।
ब्यूनस आयर्स में नरेन्द्र मोदी और सी चिनफिंग की बातचीत में सीमा-विवाद से ज्यादा व्यापारिक रिश्तों पर जोर था। अमेरिकी अर्दब में होने की वजह से चीन ने भारत की तरफ भी हाथ बढ़ाए हैं। ह्वाइट हाउस ने घोषणा की है कि यदि 90 दिन के भीतर दोनों पक्ष किसी समझौते पर नहीं पहुँचे, तो जो टैरिफ अभी 10 फीसदी है, वह 25 फीसदी हो जाएगा। सितम्बर में उसने चीन के तकरीबन 200 अरब डॉलर के माल पर 10 फीसदी टैक्स लगा दिया था। इसे उसने 25 फीसदी करने की घोषणा की है, जिसे फिलहाल लागू नहीं करेगा। इस कदम के जवाब में चीन ने भी अमेरिकी माल पर टैरिफ बढ़ाया है, पर ज्यादा बड़ा नुकसान चीन का है।  
अमेरिकी विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाला वक्त टकराव वाला है। बर्लिन के फ्री विश्वविद्यालय के चीन-विशेषज्ञ बर्टोल्ड कुह्न का कहना है कि अमेरिका-चीन के व्यापार-विवादों के निपटारे की दिशा में यह पहला कदम है, पर अभी काफी विमर्श होना है। पेइचिंग में कार्नेजी-सिंह्वा सेंटर के डायरेक्टर पॉल हेनले के अनुसार चीन को इस बातचीत में पूरी संजीदगी से शामिल होना पड़ेगा। डील की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन को अमेरिकी कृषि-उत्पाद फौरन खरीदने हैं। चीन ने धमकियाँ तो दी हैं, लागू नहीं किया। अमेरिका ने उन्हें लागू किया है और उन्हें बढ़ा रहा है। दबाव में आकर चीन ने अमेरिकी माल के लिए बाजार खोलने शुरू किए हैं।
बातचीत का अब जो दौर चलेगा, उसमें केवल टैरिफ घटाना-बढ़ाना और आयात-निर्यात ही नहीं होगा। अब तकनीकी हस्तांतरण, बौद्धिक सम्पदा अधिकार, सायबर-चोरी और इंटरनेट के दुरुपयोग जैसे मामले भी उठेंगे। दुनिया में सायबर-चोरी का बहुत बड़ा केन्द्र चीन है। रिवर्स-इंजीनियरी और कॉपीराइट उल्लंघन में भी चीन काफी आगे है। वह अनेक अंतरराष्ट्रीय नियमों को खारिज करता है।
दोनों देशों के बीच 90 दिन के बीच समझौता करने पर सहमति हुई है। यानी कि यह बातचीत 1 मार्च के आसपास पूरी होगी। उसी समय चीनी जन-प्रतिनिधि सदन का राष्ट्रीय अधिवेशन होगा। ऐसे मौकों पर चीनी राजनेता प्रायः दूसरे देशों के सामने झुकने या दूसरों को रियायतों की घोषणाएं करने से बचते हैं। शी चिनफिंग पर दोतरफा दबाव है। उन्हें अमेरिकी दबाव के साथ-साथ आंतरिक राजनीति का सामना भी करना है।
उधर जी-20 का संयुक्त वक्तव्य रोते-झींकते ही जारी हो पाया है। अभी तक ऐसे वक्तव्यों का जारी होना आम बात थी, पर ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से बहु-राष्ट्रीय संवाद और संस्थाओं की जरूरत पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। इस शिखर सम्मेलन के ठीक पहले पपुआ न्यू गिनी में इस किस्म के संवाद की भद्द पिटी थी। वहाँ हुए एशिया पैसिफिक आर्थिक सहयोग फोरम (एपेक) संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं कर पाया, क्योंकि अमेरिका और चीन अपनी-अपनी बात पर अड़े रहे।
ब्यूनस आयर्स में संयुक्त वक्तव्य जारी करने के पहले अमेरिका की इस बात को स्वीकार किया गया कि बयान में संरक्षणवाद और व्यापार-विवादों को गलत नहीं बताया जाए। चीन के दबाव में अनुचित व्यापार-व्यवहार जैसे शब्दों को बाहर किया गया। एपेक घोषणापत्र इसी झगड़े में जारी नहीं हो पाया था। अमेरिका की वर्तमान सरकार का ध्यान अब वैश्वीकरण पर न होकर अपने आर्थिक हितों पर है। इस साल जून में कनाडा में हुए जी-7 के शिखर सम्मेलन में भी ट्रम्प का रुख कड़ा था। अमेरिका के सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन तो जी-20 के संयुक्त बयान से अमेरिका का नाम ही हटा देने के पक्षधर हैं।
संयुक्त वक्तव्य का जो स्वीकृत खाका बनकर आया, उसमें कहा गया है, संवृद्धि, विकास, उत्पादकता, नवोन्मेष, रोजगारों के सृजन के महत्वपूर्ण इंजन हैं व्यापार और निवेश। बयान में यह भी जोड़ा गया कि यह व्यवस्था इन उद्देश्यों को प्राप्त कर पाने में विफल हो रही है और इसमें सुधार की गुंजाइश है। दस्तावेज में सुधारों की बात कही गई है, पर यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि सुधार किस बात में होंगे।
अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन की अपीलीय संस्था में नियुक्तियों को ब्लॉक कर दिया है। शिकायतों की सुनवाई की इसकी सामर्थ्य पर इससे विपरीत प्रभाव पड़ा है। अमेरिका मानता है कि हम टैरिफ का इस्तेमाल करके अपने व्यापार हितों को बढ़ाना चाहते हैं, इसमें डब्लूटीओ खामखां टाँग अड़ाता है। अब जी-20 के भीतर बहस है कि डब्लूटीओ में सुधार होने भी चाहिए या नहीं। व्यापार ही नहीं अमेरिका ने जलवायु परिवर्तन और प्रवास जैसे मसलों पर विचार करने पर भी आपत्ति व्यक्त की है।
सम्मेलन के घोषणापत्र में दबे स्वर से कहा गया कि पेरिस समझौता अब वापस नहीं हो सकता और उसे पूरी तरह लागू होना चाहिए। अलबत्ता इसमें इस बात का उल्लेख हुआ कि अमेरिका इससे बाहर होने की अपनी घोषणा पर दृढ़-प्रतिज्ञ है। और वह पर्यावरण की रक्षा करते हुए हर तरह के ऊर्जा स्रोतों और तकनीकों का इस्तेमाल करेगा। शरणार्थियों वगैरह का जिक्र भी इसमें किया गया, पर उसके लिए किसी कार्यवाही की पेशकश नहीं की गई। 


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