मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति
डोनाल्ड ट्रम्प ने अगले साल गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि के रूप में भारत आने के
निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया है। एक अंग्रेजी अख़बार ने खबर दी है कि भारत के
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल को इस आशय की चिट्ठी अमेरिकी
प्रशासन ने लिखी है। खबरें यह भी हैं कि ट्रम्प ने रूस के साथ हुए भारत के रक्षा
सौदे की वजह से इस निमंत्रण को अस्वीकार किया है।
इस खबर के आम होने से भारतीय डिप्लोमेसी को दो
तरह से ठेस लगी है। पहली बात तो यह कि ऐसे निमंत्रण या तो रज़ामंदी के औपचारिक
होने चाहिए या फिर उनका प्रचार तब करना चाहिए, जब स्वीकृति की संभावना हो। इस साल
अप्रैल में ट्रम्प को औपचारिक निमंत्रण दिया गया था, तब अमेरिकी प्रशासन ने कहा था
कि टू प्लस टू वार्ता के बाद तय करेंगे। टू प्लस टू वार्ता टलती रही और अंत में
सितंबर में हुई। पर तबतक एस-400 और ईरान से तेल की खरीद का मामला उठ चुका था।
अमेरिकी संसद ने ईरान, उत्तर कोरिया और रूस पर पाबंदियाँ लगाने के लिए सन 2017 में
‘काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट (काट्सा)’ पास किया था। इसका
उद्देश्य यूरोप में रूस के बढ़ते प्रभाव को रोकना भी है। इसकी धारा 231 के तहत
अमेरिकी राष्ट्रपति के पास किसी भी देश पर 12 किस्म की पाबंदियाँ लगाने का अधिकार
है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति के पास इन पाबंदियों से छूट देने के अधिकार हैं,
पर ट्रम्प सरकार के तौर-तरीके समझ में आते नहीं हैं। निमंत्रण को अस्वीकार करके
उसने भारत के नाम कड़ा संदेश भेजा है।
निमंत्रण के अस्वीकार से पैदा हुई नकारात्मकता ही
काफी है। दूसरे, भारत अब जिस राष्ट्र-प्रमुख को भी निमंत्रण देगा, वह यही मानकर
चलेगा कि ट्रम्प के इनकार की वजह से हम ‘सेकंड चॉइस’ हैं। अमेरिका-प्रेम को लेकर भारत में काफी
प्रचार होता रहा है। बेशक हमें अमेरिका की आला दर्जे की तकनीक चाहिए, पर हमारे भी
राष्ट्रीय हित हैं।