सोमवार, 3 दिसंबर 2018

खाड़ी-देशों से सुधर रहे हैं इस्रायल के रिश्ते


इस्रायल के चैनल-2 ने खबर दी है कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बहरीन के साथ राजनयिक रिश्ते स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की है। उन्होंने यह बात कनाडा के राष्ट्रपति इदरीस डैबी की यरूशलम यात्रा के दौरान कही। एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, हमने पाया है कि कुछ अरब देशों का इस्रायल के बारे में विचार बदल रहा है। नेतन्याहू अचानक 25 अक्तूबर को ओमान के दौरे पर गए और वहाँ उन्होंने राजधानी मस्कट के पास के शहर सीब के शाही महल में सुल्तान सैयद कबूस से मुलाकात की। पिछले 22 साल में किसी इस्रायली शासनाध्यक्ष का अरब देश में यह पहला दौरा था।

इस्रायल के केवल दो अरब देशों के साथ राजनयिक सम्बंध हैं। ये हैं मिस्र और जॉर्डन। अब नेतन्याहू ने इशारा किया है कि उनके रिश्ते खाड़ी के देशों के साथ सुधर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मैं कुछ और अरब देशों में जाऊँगा। जल्द ही बहरीन जाने वाला हूँ। इतना ही नहीं बहरीन ने इस्रायल के वित्तमंत्री एली कोहेन को अप्रैल में होने वाले एक सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण दिया है। तीन दिन का यह सम्मेलन विश्व बैंक ने आयोजित किया है। बहरीन के साथ इस्रायल के राजनयिक सम्बंध स्थापित करने पर बात भी चल रही है।

अक्तूबर में नेतन्याहू के ओमान दौरे के कुछ दिन बाद नवम्बर में इस्रायली परिवहन और इंटेलिजेंस मंत्री यिसरायल काट्ज ने ओमान में एक परिवहन सम्मेलन में शिरकत की। पिछले कुछ दिनों में इस्रायल की तरफ से और कुछ अरब देशों की तरफ से लगातार ऐसे संकेत मिल रहे हैं, जिनसे लगता है कि इनके रिश्ते सुधरने जा रहे हैं। ओमान के साथ इस्रायल के राजनयिक रिश्ते नहीं हैं, पर नेतन्याहू का वहाँ जाना बता रहा है कि इस यात्रा के पीछे पहले से अंदरूनी तौर पर विचार-विमर्श किया गया है। ओमान इस इलाके में प्रभावशाली देश है। लगता है कि पृष्ठभूमि में कुछ चल रहा है।


इतना ही नहीं गत 25 अक्तूबर को कतर के अधिकारियों ने 48वीं विश्व आर्टिस्टिक जिम्नास्टिक्स चैम्पियनशिप के दौरान अरब देशों की खेल परम्परा को तोड़ते हुए इस्रायली ध्वज को भी लगाने की अनुमति दी। इसके बाद 28 अक्तूबर को इस्रायल के संस्कृति और खेलमंत्री मीरी रेगेव अबू धाबी में हुई एक जूडो प्रतियोगिता में शामिल हुए। इसमें इस्रायल की राष्ट्रीय धुन बजाई भी गई। इसके दो दिन बाद इस्रायल के संचार मंत्री अयूब कारा ने दुबई के एक कार्यक्रम में भाषण भी दिया।

खाड़ी देशों के साथ इस्रायल के रिश्तों की मधुरता नई बात नहीं है। खाड़ी के बहुत से देशों की समझ है कि अमेरिका से रिश्ते बनाने हैं, तो इस्रायल से भी बनाने होंगे। इसी मनोकामना से कतर ने 1990 में दोहा में इस्रायली व्यापार कार्यालय खोलने की अनुमति दी थी। ऐसा लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ईरान के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए इस्रायल के साथ अरब देशों को भी जोड़ना चाहते हैं। ऐसे में खाड़ी देशों के पास विकल्प नहीं बच रहा है। इसमें सऊदी अरब भी परोक्ष सहायता कर रहा है।

सवाल है कि क्या ये देश फलस्तीनियों को अधर में छोड़ देंगे? सन 2002 में सऊदी अरब की पहल पर बेरूत शिखर सम्मेलन में एक प्रस्ताव पास हुआ था, जिसमें कहा गया था कि इस्रायल पूर्वी यरूशलम समेत सभी अधिकृत क्षेत्रों से हट जाए और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव संख्या 194 के तहत फलस्तीनी शरणार्थी समस्या के बाबत न्यायपूर्ण समझौता कर ले तो, अरब देशों के उसके साथ रिश्ते सामान्य हो सकते हैं। लगता है कि अरब देश अब इस प्रस्ताव पर जोर नहीं देंगे। पर क्या कोई वैकल्पिक योजना तैयार की गई है। इंतजार कीजिए, शायद जल्द कुछ सामने आए। 
संडे नवजीवन में प्रकाशित


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