शनिवार, 12 जनवरी 2019

मैक्सिको की दीवार पर अड़े ट्रम्प, अमेरिका में शटडाउन


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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और देश की संसद के बीच टकराव के कारण अमेरिका की संघीय सरकार के कर्मचारियों का वेतन रुकने का खतरा पैदा हो गया है। राष्ट्रपति ट्रम्प दक्षिण मैक्सिको के साथ लगी सीमा पर सैकड़ों किलोमीटर लम्बी दीवार बनाने पर अड़े हैं और संसद उसके लिए धनराशि स्वीकृत करने को तैयार नहीं है। उधर ट्रम्प ने धमकी दी है कि पैसा नहीं दिया गया तो मैं राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दूँगा। अमेरिकी क़ानून में प्रावधान है कि राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपति को सैन्य परियोजनाओं का काम सीधे तौर पर करने का अधिकार हासिल है। यह रक़म रक्षा मंत्रालय के बजट से आती है, जिसे संसद की मंज़ूरी मिली होती है।

ट्रम्प ने यह भी कहा है कि यह शटडाउन मैं महीनों, बल्कि वर्षों तक चला सकता हूँ। यह कामबंदी पिछली 22 दिसम्बर से चल रही है। देश के संग्रहालयों और चिड़ियाघरों में ताले लग गए, क्योंकि उनकी देखरेख और सफाई करने वाले कर्मचारी काम पर नहीं आए। अमेरिका के इतिहास में सबसे लम्बा शटडाउन सन 1995 में 21 दिन तक चला था। इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक संकट जारी था। लगता यह है कि यह संकट टल भी जाए तो आने वाले समय में फिर से कोई संकट पैदा हो जाएगा।

ताइवान का चीन में विलय क्या कभी सम्भव होगा?

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को युद्ध के  लिए तैयार रहने को कहा है। शुक्रवार 4 जनवरी को सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) की पेइचिंग में हुई बैठक में उन्होंने कहा कि देश के सामने खतरे बढ़ रहे हैं। वे इस कमीशन के अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया में ऐसे बदलाव हो रहे हैं जैसे पिछली एक सदी में भी नहीं हुए थे। रॉयटर्स के अनुसार चीन दक्षिण चीन सागर में पर नियंत्रण बढ़ाना चाहता है। इसके अलावा अमेरिका के साथ व्यापार के मुद्दों को लेकर और ताइवान के चीनी एकीकरण के मसलों को लेकर तनाव है।

सीरिया में रूसी भूमिका भी बढ़ी

अमेरिकी सेना की वापसी की खबरें आने के बाद अब सवाल है कि सीरिया में होगा क्या? सवाल यह भी है कि वहाँ अमेरिकी सेना क्या करने के लिए गई थी? दाएश से लड़ने या राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार का तख्ता पलटने, हिज़्बुल्ला को हराने या कुर्दों का दमन रोकने? डोनाल्ड ट्रम्प का कहना है कि हम तो इस्लामिक स्टेट से लड़ने गए थे। अब वह तकरीबन हार चुका है, इसलिए हम वापस जा रहे हैं। बाकी का काम तुर्की और सऊदी अरब देखेंगे। पर लगता है कि अभी यहाँ काफी काम होना बाकी है। अमेरिकी सेना की वापसी के बाद इस इलाके में रूस की भूमिका भी बढ़ी है।
सन 2011 में जब अरब देशों में जनांदोलन खड़े हो रहे थे, सीरिया के शासक बशर अल-असद के खिलाफ भी बगावत शुरू हुई। बशर अल-असद ने 2000 में अपने पिता हाफेज़ अल-असद की जगह ली थी। अरब देशों में सत्ता के ख़िलाफ़ शुरू हुई बगावत से प्रेरित होकर मार्च 2011 में सीरिया के दक्षिणी शहर दाराआ में भी लोकतंत्र के समर्थन में आंदोलन शुरू हुआ था, जिसने गृहयुद्ध का रूप ले लिया। उन्हीं दिनों इराक में इस्लामिक स्टेट उभार शुरू हुआ, जिसने उत्तरी और पूर्वी सीरिया के काफी हिस्सों पर क़ब्ज़ा कर लिया। इस लड़ाई में ईरान, लेबनान, इराक़, अफ़गानिस्तान और यमन से हज़ारों की संख्या में शिया लड़ाके सीरिया की सेना की तरफ़ से लड़ने के लिए पहुंचे।

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

‘ग्लोबल पुलिसमैन’ की भूमिका से क्यों भागा अमेरिका?


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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनकी पत्नी मेलानिया इराक में तैनात अमेरिकी सैनिकों को बधाई देने के लिए बुधवार 26 दिसम्बर की रात अचानक इराक जा पहुंचे। राष्ट्रपति के रूप में यह ट्रम्प की पहली इराक यात्रा थी। इस यात्रा के दौरान बग़दाद के पश्चिम में स्थित एअर बेस पर पत्रकारों से उन्होंने कहा कि अमेरिका ग्लोबल पुलिसमैन की भूमिका नहीं निभा सकता। हमने दुनिया की रखवाली का ठेका नहीं लिया है। दूसरे देश भी जिम्मेदारियों को बाँटें। उन्होंने सीरिया से अपने सैनिकों को वापस बुलाने और बाकी क्षेत्रीय देशों खासकर तुर्की पर आईएस का मुकाबला करने की जिम्मेदारी डालने के अपने फैसले के पक्ष में कहा कि यह ठीक नहीं है कि सारा बोझ हम पर डाल दिया जाए। यों भी अब सीरिया में अमेरिका की जरूरत नहीं है, क्योंकि आईएस को हरा दिया गया है।

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

शेख हसीना की मजबूती भारत के लिए अच्छी खबर


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बांग्लादेश में जो चुनाव परिणाम आए हैं, उनके बारे में किसी ने नहीं सोचा था। अवामी लीग के नेतृत्व में बने महाजोट (ग्रैंड एलायंस) को 300 में से 288 सीटें मिली हैं और विरोधी दलों के गठबंधन को केवल सात। विरोधी दलों ने चुनाव में धाँधली का आरोप लगाया है और दुबारा चुनाव की माँग की है, पर अब इन बातों का कोई मतलब नहीं है। उन्हें विचार करना होगा कि ऐसे परिणाम क्यों आए और उनकी भावी रणनीति क्या हो। मुख्य विरोधी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने 2014 के चुनावों का बहिष्कार करके जो गलती की थी, उसका भी यह परिणाम है।

विरोधियों की नेतृत्व-विहीनता भी इन परिणामों में झलक रही है। बीएनपी की मुख्य नेता जेल में है और उनका बेटा देश के बाहर है। पार्टी पूरी तरह बिखरी हुई है। चुनाव परिणामों के एकतरफा होने का सबसे बड़ा प्रमाण प्रधानमंत्री हसीना के क्षेत्र दक्षिण पश्चिम गोपालगंज में देखा जा सकता है, जहाँ शेख हसीना ने दो लाख 29 हजार 539 वोटों से जीत दर्ज की है। उनके विरोधी बीएनपी के उम्मीदवार को मात्र 123 वोट मिले। उसका मतलब है कि देश में रुझान इस वक्त एकतरफा है। यह बात राजनीतिक दृष्टि से खराब भी है। इसके कारण सत्ता के निरंकुश होने का खतरा बढ़ता है।

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

नवाज़ शरीफ़ की जेल-यात्राएं और पाकिस्तानी लोकतंत्र




पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को फिर से जेल के सीखचों के पीछे भेज दिया गया है। भ्रष्टाचार निरोधी एक अदालत (नेशनल एकाउंटेबलिटी ब्यूरो या एनएबी) ने अल-अज़ीज़िया स्टील मिल्स मामले में सात साल की सज़ा सुनाई है। फ्लैगशिप इन्वेस्टमेंट वाले एक और मामले में उन्हें बरी कर दिया गया है। इससे पहले, जुलाई में एक अन्य मामले में कोर्ट ने नवाज़ शरीफ़, उनकी बेटी और दामाद को सज़ा सुनाई थी और जेल भेज दिया था। बाद में एक अदालती फैसले के कारण वे जेल से बाहर आ गए, पर अब फिर से उन्हें जेल जाना पड़ा है। उनके अलावा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता आसिफ अली ज़रदारी पर भी जेल-यात्रा का खतरा मंडरा रहा है।

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

2018 की वैश्विक हलचल


पैक्स अमेरि epaper.navjivanindia.com//imageview_194_15853939_4_71_30-12-2018_i_1_sf.htmlकाना का उतार
यानी कि अमेरिकी पराभव का प्रारम्भ। इस साल की घटनाओं को मिलाकर पढ़ने से जाहिर होता है कि यह साल अमेरिका के वैश्विक रसूख में गिरावट का साल था। साल में अंत में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी की घोषणा करके इस बात की पुष्टि भी कर दी। उनके इस फैसले से असहमत रक्षामंत्री जेम्स मैटिस और एक अन्य उच्च अधिकारी ब्रेट मैकगर्क ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया। मैकगर्क सीरिया में आईएस के खिलाफ बनाए गए वैश्विक गठबंधन में अमेरिका के विशेष दूत थे।
डेमोक्रेटों की वापसी
नवम्बर में हुए अमेरिका के मध्यावधि चुनाव में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों पार्टियों को आंशिक सफलताएं मिलीं। जहाँ सीनेट में डोनाल्ड ट्रम्प की पार्टी रिपब्लिकन को और प्रतिनिधि सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी को बहुमत प्राप्त हो गया है। इसका अर्थ है कि ट्रम्प प्रशासन को न्यायिक और प्रशासनिक नियुक्तियाँ करने में दिक्कत नहीं होगी, पर नीतियों और खर्च से जुड़े जिन मामलों में प्रतिनिधि सदन की सहमति की जरूरत होती है, वहाँ उन्हें दिक्कत का सामना करना होगा। इससे यह भी साबित हुआ है कि ट्रम्प की लोकप्रियता कम हो रही है।
वेनेजुएला में संकट
वेनेजुएला में अर्थव्यवस्था संकट में है। लाखों लोग देश छोड़कर जा रहे हैं, महंगाई हज़ारों गुना बढ़ गई है। वहां एक कॉफी के कप की क़ीमत 25 लाख रुपये हो चुकी है। इस साल मई में हुए चुनाव में वहाँ निकोलस माडुरो फिर से राष्ट्रपति बने हैं। इस देश में बड़ी संख्या में तेल के भंडार हैं, लेकिन यही ताक़त आर्थिक समस्याओं का कारण भी बन गई है। तेल से मिलने वाला राजस्व उसके निर्यात का 95 प्रतिशत है। सन 2014 में तेल की क़ीमतें गिरने के बाद से उसके विदेश मुद्रा भंडार में भारी कमी होने लगी है।
यमन में शांति-स्थापना
पश्चिम एशिया के देश यमन में साल के अंत में संरा के प्रयासों से शांति-स्थापना के लिए समझौता हो जरूर गया है, पर छिटपुट हिंसा अब भी जारी है। सन 2014 से यह देश हिंसा की चपेट में है, जिसके कारण लाखों लोग भुखमरी की चपेट में हैं। अनुमान है कि सऊदी अरब-नीत गठबंधन और हूती विद्रोहियों के बीच संघर्ष में 14 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और युद्ध के कारण पैदा हुए अकाल ने 50 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। यमन के अलावा मध्य अफ्रीका के कांगो और दक्षिण सूडान में भी युद्ध के कारण मानवीय त्रासदी पैदा हो गई है।
मीटू आंदोलन का वैश्विक-प्रसार
एक साल पहले हॉलीवुड के निर्माता हार्वे वांइंसटाइन पर कुछ महिलाओं ने यौन शोषण के आरोप लगाए। न्यूयॉर्क टाइम्स और न्यूयॉर्कर ने इस आशय की खबरें प्रकाशित कीं। देखते ही देखते यह आंदोलन दुनियाभर के देशों में फैल गया है। ट्विटर पर हैशटैग मीटू के रूप में शुरू हुआ यह आंदोलन अब कार्यक्षेत्र पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ वैश्विक अभियान की शक्ल ले चुका है। यह वाक्यांश अब स्त्री-मुक्ति का आप्त-वाक्य बन चुका है। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि इस साल नोबेल शांति पुरस्कार डेनिस मुकवेगे और नादिया मुराद को यौन हिंसा के खिलाफ कोशिशों के लिए दिया गया है।
सऊदी अरब में बदलाव
यह साल सऊदी अरब में आ रहे बदलावों के लिए भी याद रखा जाएगा। वहाँ स्त्रियों के प्रति बर्ताव में बदलाव आ रहा है। देश के युवा क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) के नेतृत्व में विजन-2030 तैयार किया गया है, ताकि अर्थव्यवस्था केवल पेट्रोलियम के सहारे न रहे। वहीं अक्तूबर के महीने में तुर्की के शहर इस्तानबूल में सऊदी अरब के वाणिज्य दूत कार्यालय में सऊदी मूल के पत्रकार जमाल खाशोज्जी की हत्या के विवाद में राजघराना बुरी तरह घिर गया है। इस हत्याकांड को दबाने का प्रयास करने के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति भी आलोचना के दायरे में हैं।
ईरानी नाभिकीय-संधि टूटी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पिछले साल अपने चुना अभियान के दौरान ही घोषणा कर दी थी कि मैं ईरान के साथ नाभिकीय-संधि तोड़ दूँगा। इस साल मई में उन्होंने यह कारनामा करके दिखा दिया। ट्रम्प ने यह कदम अपने कई सलाहकारों और रक्षामंत्री जेम्स मैटिस की राय के खिलाफ उठाया। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मन नेताओं ने भी उन्हें रोका। ट्रम्प ने संधि ही नहीं तोड़ी, ईरान पर पाबंदियों की घोषणा भी कर दी। अमेरिका के विदेशमंत्री माइक पोम्पिओ का कहना है कि हमारा उद्देश्य केवल ईरान की नाभिकीय-शक्ति को समाप्त करना नहीं, वहाँ लोकतंत्र की स्थापना करना है। 
चीन-अमेरिका ट्रेड-वॉर
यह साल चीन और अमेरिका के बीच छिड़े कारोबारी-संग्राम के लिए भी याद किया जाएगा। इसमें निशाना चीन है, पर कमोबेश दूसरे देश भी इससे प्रभावित होंगे। साल जनवरी में ही अमेरिका ने वॉशिंग मशीनों और सोलर पैनल के आयात पर  टैक्स बढ़ाने की घोषणा की। इसके बाद मार्च में स्टील और अल्युमिनियम पर टैक्स बढ़ाया। जुलाई में उन्होंने युरोपियन संघ के साथ इस सिलसिले में एक समझौता भी किया। फिलहाल ब्यूनस आयर्स में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के हाशिए पर ट्रम्प और चीनी राष्ट्रपति की मुलाकात के बाद 90 दिन का युद्ध-विराम चल रहा है।
ब्रेक्जिट पर लुका-छिपी
इस साल यूरोप में ब्रेक्जिट काफी बड़ी खबर बना रहा। सन 2015 में ब्रिटिश जनता ने एक जनमत संग्रह में युरोपियन संघ से अलग होने का फैसला किया था। उस फैसले को लागू करने की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, दिक्कतें बढ़ती जा रहीं हैं। यूरोपीय संघ के सदस्यों ने रविवार 25 नवम्बर को ब्रेक्जिट समझौते को मंजूरी दे दी। बेशक यह समझौता ईयू ने स्वीकार कर लिया है, पर ब्रिटिश संसद से इसकी पुष्टि अब सबसे बड़ा काम है। युनाइटेड किंगडम की संसद इस प्रस्ताव पर 12 दिसम्बर को फैसला करना था, पर अब यह जनवरी तक टल गया है।
जलवायु परिवर्तन
यह साल वैश्विक जलवायु परिवर्तन के खतरों का संदेश भी लेकर आया था। अक्तूबर में संयुक्त राष्ट्र के इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे पास अभी करीब 12 साल का समय है कि हम दुनिया के बढ़ते तापमान को रोकने के लिए कुछ कदम उठा सकते हैं। सन 2015 में दुनिया के देशों में इस सिलसिले में पेरिस संधि की थी, जिसे 2020 में लागू करना है। पोलैंड के कैटोविस में 2 से 15 दिसम्बर, 2018 तक वैश्विक जलवायु सम्मेलन हुआ, पेरिस संधि को लागू करने के लिए एक नियम-पुस्तिका बनाई गई है।

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