सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय भूमिका की परीक्षा

अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी अब लगभग निश्चित है. अमेरिका मानता है कि पाकिस्तानी सहयोग के बिना यह समझौता सम्भव नहीं था. उधर तालिबान भी पाकिस्तान का शुक्रगुजार है. रविवार 10 फरवरी को पाकिस्तान के डॉन न्यूज़ टीवी पर प्रसारित एक विशेष इंटरव्यू में तालिबान प्रवक्ता ज़बीउल्ला मुजाहिद ने कहा कि हम सत्ता में वापस आए तो पाकिस्तान को भाई की तरह मानेंगे. उन्होंने कहा कि इस वक्त अफ़ग़ानिस्तान में जो संविधान लागू है, वह अमेरिकी हितों के अनुरूप है. हमारा शत-प्रतिशत मुस्लिम समाज है और हमारा संविधान शरिया पर आधारित होगा.

इसके पहले 6 फरवरी को मॉस्को में रूस की पहल पर हुई बातचीत में आए तालिबान प्रतिनिधियों ने कहा कि हम समावेशी इस्लामी-व्यवस्था चाहते हैं, इसलिए नया संविधान लाना होगा. तालिबानी प्रतिनिधिमंडल के नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकज़ाई ने कहा कि काबुल सरकार का संविधान अवैध है. उसे पश्चिम से आयात किया गया है. वह शांति के रास्ते में अवरोध बनेगा. हमें इस्लामिक संविधान लागू करना होगा, जिसे इस्लामिक विद्वान तैयार करेंगे.

सवाल है कि अफ़ग़ानिस्तान की काबुल सरकार को मँझधार में छोड़कर क्या अमेरिकी सेना यों ही वापस चली जाएगी? पाकिस्तानी सेना के विशेषज्ञों को लगता है कि अब तालिबान शासन आएगा. वे मानते हैं कि तालिबान और अमेरिका के बीच बातचीत में उनके देश ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है और इसका पुरस्कार उसे मिलना चाहिए. अख़बार ‘दुनिया’ में प्रकाशित एक आलेख के मुताबिक़ पाकिस्तान ने तालिबान पर दबाव डाला कि वे अमेरिका से बातचीत के लिए तैयार हो जाएं. इस वक्त वह ऐसा भी नहीं जताना चाहता कि तालिबान उसके नियंत्रण में है. अलबत्ता अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान की सरकार को आश्वस्त किया है कि हम उसे मँझधार में छोड़कर जाएंगे नहीं. अमेरिका शुरू से मानता रहा है कि तालिबान को पाकिस्तान में सुरक्षित पनाह मिली हुई है.

सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

लाहौर में इस साल भी नहीं मनेगा बसंत, पर चर्चा जरूर है


http://epaper.navjivanindia.com//imageview_257_173242334_4_71_03-02-2019_i_1_sf.html
जिस तरह भारत में सांस्कृतिक सवालों पर आए दिन धार्मिक कट्टरता के सवाल उठते हैं तकरीबन उसी तरह पाकिस्तान में भी उठते हैं। दक्षिण एशिया के समाज में तमाम उत्सव और समारोह ऐसे हैं, जो धार्मिक दायरे में नहीं बँधे हैं। वसंत पंचमी या श्रीपंचमी ऐसा ही मौका है, जो ऋतुओं से जुड़ा है। इसे भारत, नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान में अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। पीला या बसंती रंग इसकी पहचान है और इसे मनाने के अलग-अलग तरीके हैं। पंजाब में बसंत के दिन पतंगे उड़ाने की परम्परा है। विभाजन के बाद भी यह परम्परा चली आ रही है, पर पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान बसंत के उत्सव पर रोक लगी हुई है। वहाँ की पंजाब सरकार ने पतंगबाजी से पैदा होने वाले खतरों को लेकर इसपर रोक लगा रखी है, पर काफी लोग मानते हैं कि इस त्योहार की हिन्दू पहचान को लेकर सवालिया निशान खड़े हुए थे, जो पाबंदी की असली वजह है।  

भारत में मुगल बादशाहों ने बसंत को सांस्कृतिक रूप से स्वीकार किया था और उसे बढ़ावा दिया था। मुग़ल काल की मिनिएचर पेंटिंग में बसंत-उत्सव की झलक मिलती है। महाराजा रंजीत सिंह ने अपने दौर में बसंत के दौरान दस दिन की छुट्टी घोषित कर रखी थी। उनके सैनिक इस दौरान पीले रंग के वस्त्र पहनते थे। बँटवारे के बाद पाकिस्तानी पंजाब में भी पतंग उड़ाने का रिवाज़ बना रहा। बल्कि हुआ यह कि अस्सी के दशक में भारत के मुकाबले पाकिस्तानी समाज में पतंगबाजी ज्यादा लोकप्रियता हासिल कर गई। इसकी एक वजह शायद पाकिस्तानी समाज के अंतर्विरोध थे। वह ज़ियाउल हक़ का दशक भी था, जब साहित्य, कला और संस्कृति को धार्मिक-दृष्टि से देखना शुरू हुआ। मनोरंजन पर पाबंदियाँ लगीं, जिसमें फ़िल्म और रंगमंच भी शामिल थे। सैनिक सरकार और पाबंदियों के उस दौर में लोगों को मनोरंजन और तफरीह का एक रास्ता बसंत की शक्ल में नजर आया। इसके केन्द्र में थी, पतंगबाजी।
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...