चीन के शिनजियांग प्रांत में रहने वाले वीगर मुसलमानों के (अंग्रेजी
वर्तनी के कारण हिन्दी में काफी लोग इन्हें उइगुर भी लिख रहे हैं) दमन की खबरें
आने के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने सख्त रुख अख्तियार किया है। पिछली
6 नवम्बर को जिनीवा में परिषद की एक
समीक्षा बैठक में यह मामला उठाया गया। इस समीक्षा बैठक में अमेरिका, जापान और
कनाडा समेत कुछ देशों के प्रतिनिधियों ने चीनी नीतियों की कड़ी आलोचना की। इसमें कहा
गया कि चीन ने अपने विशेष कैम्पों में वीगर नागरिकों को कैद कर रखा है, उन्हें
फौरन रिहा किया जाए।
हालांकि चीन ने इन आरोपों को राजनीति से
प्रेरित बताया, पर मीडिया में जो खबरें मिल रहीं हैं उनसे लगता है कि इन आरोपों का
जवाब देना उसके मुश्किल होता जाएगा। मानवाधिकार परिषद के भीतर यह धारणा पुष्ट होती
जा रही है कि चीन का व्यवहार चिंताजनक है। मंगलवार 6 नवम्बर की बैठक के लिए चीन
अपनी तरफ से तैयारी करके आया था। इसके लिए उसने अपने उप विदेशमंत्री को खासतौर से
भेजा था। उनके साथ शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमची के मेयर यासिम सादिक भी आए
थे, जो वीगर मूल के हैं। सादिक ने कहा कि वीगर प्रशिक्षु इन कैम्पों में अपनी
इच्छा से आए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चीन
सरकार के प्रयासों के कारण पिछले 21 महीनों में इस इलाके में एक भी आतंकी
हमला नहीं हुआ है। विश्व समुदाय मानता है कि आबादी के चुनींदा चीन-परस्त लोगों की
बात पूरे समुदाय की राय नहीं हो सकती।
चीन के वीगरों के मामले को उठाने की वैश्विक पहल के पीछे अमेरिका सहित
यूरोप के कई देश हैं। इस मसले को चीन अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप मानता है और इसके राजनीतिकरण
का विरोध भी करता है। हाल में चीन और रूस ने अफगानिस्तान के मामलों में दिलचस्पी
दिखाई है। इसके पीछे एक बड़ा कारण वीगरों के पलायन का भी है। वैश्विक मामलों से
जुड़ी पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ ने हाल में जानकारी दी कि शिनजियांग प्रांत से बड़ी संख्या में भागकर
वीगर अफगानिस्तान जा रहे हैं। यह भगदड़ वीगरों के धार्मिक, सामाजिक मसलों को लेकर
कड़ाई बरते जाने के बाद शुरू हुई है। चीन इन्हें आतंकवादी बताता है।
शिनजियांग का यह रेगिस्तानी और शुष्क इलाक़ा है। इसकी सरहदें दक्षिण
में तिब्बत और भारत, दक्षिण-पूर्व
में चीन के चिंग हई और गांसू प्रांतों, पूर्व में मंगोलिया, उत्तर में रूस और पश्चिम में क़ज़ाक़िस्तान, किर्गीज़िस्तान, ताजिकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान
अधिकृत कश्मीर से मिलती हैं।
भारत का अक्साईचिन इलाका भी, जिसपर चीन का
क़ब्ज़ा है, प्रशासनिक
रूप से शिनजियांग में शामिल है। इसकी राजधानी उरुमची है, जबकि इसका सबसे बड़ा
शहर काशगर है। काशगर शहर को चीनी भाषा में काशी भी कहा जाता है। फारसी मूल के इस
शब्द से कुश, कुषाण और हिन्दूकुश नाम भी जुड़े हैं, जो इसका ऐतिहासिक सम्बन्ध भारत
से भी बनाते है। पहली, दूसरी और तीसरी सदी के भारत के कुषाण राजवंश का सम्बन्ध भी
इस इलाके से था।
अल्पसंख्यकों का प्रतिरोध
अपने आकार में शिनजियांग स्वायत्त क्षेत्र चीन का
सबसे बड़ा प्रांत है, पर आबादी के लिहाज से यह काफी छोटा है। वीगर अलगाववादी
आंदोलन के कारण यह इलाका लगातार सुर्खियों में है। तिब्बतियों और वीगर अल्पसंख्यकों के प्रतिरोध के कारण
बाहरी देशों में चीन के अल्पसंख्यकों को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है। सन 2009 मे
शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमची में कर्फ़्यू लगने के बाद इसका जिक्र बढ़ा है।
इस हिंसा में सैकड़ों या हजारों लोगों के मरने की खबरें थी। शिनजियांग में काफ़ी
दिनों तक हान और मुस्लिम आबादी के बीच आर्थिक दरार की वजह से तनाव था। इस प्रांत
की आबादी लगभग दो करोड़ है, जिनमें आधे वीगर मुस्लिम हैं, जबकि राजधानी उरुमची में ज़्यादातर हान समुदाय के लोग रहते हैं। इस
प्रांत में तेल का बड़ा भंडार है और सरकार ने इसके लिए वहां काफी पैसा झोंका है।
चीन का आधिकारिक इतिहास इस इलाके में दो हजार साल
के पीछे नहीं जाता। वीगर इतिहासकार तुर्गन अल्मास की दो किताबों पर चीन में पाबंदी
लगा दी गई, क्योंकि वे इस इलाके के इतिहास को छह हजार साल पीछे ले जाती हैं। पिछले
दो हजार साल में यह इलाका व्यावहारिक रूप में चीन के अधीन कुल जमा पाँच सौ साल से
ज्यादा समय तक नहीं रहा।
चरमपंथी आंदोलन
यहाँ के लोग या तो पश्चिम में तुर्की की ओर से आए
हैं या उत्तर में मंगोलिया की ओर से। 1949 के पहले 1933 और 1944 में दो बार इस
क्षेत्र में पूर्वी तुर्किस्तान नाम के देश का उदय हुआ और दोनों बार राजनीतिक
शक्ति न होने और सोवियत संघ के दबाव में यह अलग देश नहीं बन सका।
यह भी सच है कि अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों में इस्लामी
चरमपंथी आंदोलन का प्रभाव यहाँ भी पड़ा है। इस इलाके के देशों के साथ चीन बेहतर
रिश्ते बना रहा है। उसकी पहल पर ही शंघाई कोऑपरेशन काउंसिल(एससीओ) की 2001 में स्थापना
हुई है, जिसमें अब भारत और पाकिस्तान भी सदस्य हैं। एससीओ का उसी साल हुआ, जिस साल अमेरिका ने
अफगानिस्तान में तालिबान विरोधी युद्ध शुरू किया था। अमेरिका भी मानता है कि वीगर
के कुछ समूहों के रिश्ते अलकायदा और दाएश के साथ हैं। वीगर के दो गुटों ईस्ट
तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) और तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी (टीआईपी)
को अमेरिका ने आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है। अफ़गानिस्तान पर हमले के दौरान अमरीका सेना ने 20 से ज़्यादा वीगरों
को पकड़ा था।
कैम्पों में कैद दस लाख वीगर
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का अनुमान है कि शिनजियांग प्रांत
के कैम्पों में करीब दस लाख वीगर को कैद करके रखा गया है। चीन कहता है कि लोग
इनमें स्वेच्छा से रहते हैं। जेलों
जैसे इन शिविरों को वह वोकेशनल शिक्षा और ट्रेनिंग सेंटर बताता है जहाँ कट्टरपंथ
और आतंकवाद से लड़ना सिखाया जाता है। तिब्बत की तरह शिनजियांग में भी कुछ
चीन-समर्थक वीगर भी हैं। शिनजियांग वीगर स्वायत्तशासी क्षेत्र की सरकार के अध्यक्ष
शोहरत जाकिर का कहना है, शिनजियांग आम तौर पर स्थिर है। पिछले 21 महीनों में आतंकवादी
हमले नहीं हुए हैं। शोहरत खुद भी वीगर हैं।
दूसरी तरफ खबरें हैं कि मुस्लिम समुदाय से
नमाज़ के दौरान इस्तेमाल होने वाली चटाई और पवित्र कुरान समेत सभी धार्मिक चीज़ों
को जमा करने के लिए कहा गया है। अप्रैल महीने सरकार ने 'असामान्य' रूप से लम्बी दाढ़ी रखने और सार्वजनिक
स्थानों पर बुरका पहनने जैसी पाबंदियाँ लगा दीं। साल 2014 के बाद से रमज़ान में रोजे
रखने पर भी रोक लगाई गई है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल में चीन से जुड़ी जानकारियों के रिसर्चर पैट्रिक
पून ने माँग की है कि संरा मानवाधिकार परिषद को इस मामले में कड़ा संदेश देना
चाहिए। चीनी और विदेशी मीडिया पर बंदिशों के बावज़ूद जो सामग्री उपलब्ध है, वह
बताती है कि चीन में तिब्बत से भी बड़ा प्रतिरोध शिनजियांग प्रांत में है। सन 1949 में शिनजियांग क्षेत्र में हान जनसंख्या
6.7 फीसदी और उइगुर 75 फीसदी थी जो 2000 में क्रमशः 40.6 और 46 फीसदी हो गई थी। अब
हान और उइगुर आबादी तकरीबन बराबर है। हान
समुदाय को बड़े पैमाने पर बसाने की वजह से यहां आबादी का संतुलन बदल गया है।
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