गुरुवार, 3 जनवरी 2019

नवाज़ शरीफ़ की जेल-यात्राएं और पाकिस्तानी लोकतंत्र




पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को फिर से जेल के सीखचों के पीछे भेज दिया गया है। भ्रष्टाचार निरोधी एक अदालत (नेशनल एकाउंटेबलिटी ब्यूरो या एनएबी) ने अल-अज़ीज़िया स्टील मिल्स मामले में सात साल की सज़ा सुनाई है। फ्लैगशिप इन्वेस्टमेंट वाले एक और मामले में उन्हें बरी कर दिया गया है। इससे पहले, जुलाई में एक अन्य मामले में कोर्ट ने नवाज़ शरीफ़, उनकी बेटी और दामाद को सज़ा सुनाई थी और जेल भेज दिया था। बाद में एक अदालती फैसले के कारण वे जेल से बाहर आ गए, पर अब फिर से उन्हें जेल जाना पड़ा है। उनके अलावा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता आसिफ अली ज़रदारी पर भी जेल-यात्रा का खतरा मंडरा रहा है।


विशेषज्ञों का अनुमान है कि जिस तरह नवाज़ शरीफ़ को चुनाव लड़ने से भी वंचित कर दिया गया है, शायद उसी तरह कुछ ज़रदारी के साथ भी होगा। ज़रदारी के खिलाफ फर्ज़ी बैंक एकाउंट के मामले हैं। दोनों नेता प्रधानमंत्री इमरान खान के प्रतिद्वंद्वी हैं और देखने वाले इसे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के रूप में भी देख रहे हैं। अलबत्ता दोनों के मामले अभी अदालतों में लम्बे खिंचेंगे, पर इतना समझ में आ रहा है कि देश की न्यायपालिका भी इमरान खान के प्रतिद्वंद्वियों को अर्दब में रखना चाहती है। जैसा कि खुलेआम कहा जा रहा है कि इसके पीछे पाकिस्तान की सेना है, जिसका दबाव न्यायपालिका पर भी है। पाकिस्तान में इस वक्त नागरिक सरकार, सेना और न्यायपालिका एक पेज पर हैं।

नागरिक सरकारों के सामने अड़ंगे

पाकिस्तान में सन 2008 में जबसे नागरिक सरकार बनी है, वहाँ की न्यायपालिका से अड़ंगे लगते रहे हैं। सन 2012 में जिस वक्त युसुफ रज़ा गिलानी को अदालती आदेश पर पद छोड़ना पड़ा। उस वक्त अदालत तत्कालीन आसिफ अली ज़रदारी के पीछे भी पड़ी थी, हालांकि ज़रदारी को राष्ट्रपति होने के नाते संविधान के अनुच्छेद 248 के तहत कानूनी कार्रवाई से छूट मिली थी। देश की न्यायपालिका ने किसी फौजी सरकार को कभी गैर-कानूनी करार नहीं दिया। सन 1956, 1962 और 1973 और 1999 के तानाशाहों को हमेशा सांविधानिक छूट मिली।

नवाज़ शरीफ़ और आसिफ ज़रदारी दोनों को इस बात का श्रेय जाता है कि वे धैर्य के साथ न्यायिक प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं। दोनों ने देश से बाहर जाने की कोशिश नहीं की, बल्कि नवाज़ शरीफ अपनी बेटी के साथ लंदन से वापस आए। इन अदालती फैसलों के साथ कुछ सवाल उठ रहे हैं। पहला यह कि क्या इमरान खान अपने विरोधियों को पूरी तरह खत्म करने में कामयाब हुए हैं? क्या पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नून) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का कोई भविष्य नहीं है? क्या नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम और ज़रदारी का बेटा बिलावल भुट्टो ज़रदारी अब राजनीति में उभरेंगे? और क्या ये प्रकरण देश के लोकतंत्र को मजबूती देने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे? सवाल यह भी है कि देश की सेना इन दोनों से नाराज और इमरान खान से खुश क्यों है? और क्या हालात ऐसे ही रहेंगे?

इमरान के सामने चुनौतियाँ

नवाज़ शरीफ को जिस एनएबी ने सज़ा दी है, वह सिद्धांततः एक स्वतंत्र संगठन है, पर विचित्र बात है कि इस सज़ा का विवरण देश के सूचना मंत्री फ़वाद चौधरी ने संवाददाता सम्मेलन में दिया। पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में आजतक एक प्रधानमंत्री ऐसा नहीं हुआ है, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया हो या जिसकी या तो हत्या न हुई हो या किसी और तरीके से हटाया नहीं गया हो। इमरान खान ने जिस दौर में प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली है, वह दौर देश के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। आर्थिक संकट के बादल गहरा रहे हैं। इधर-उधर से इंतजाम करके संकट टाला जा रहा है, पर कोई स्थायी हल सामने नजर नहीं आ रहा है।

अल-अज़ीज़िया स्टील मिल्स नवाज़ शरीफ़ के पिता मियां मोहम्मद शरीफ़ ने 2001 में सऊदी अरब में स्थापित की थी जिसका कामकाज नवाज़ शरीफ़ के बेटे हुसैन नवाज़ देख रहे थे। शरीफ़ ख़ानदान की ओर से दलील में कहा गया कि स्टील मिल लगाने के लिए कुछ पैसा सऊदी सरकार से लिया गया था। एनएबी के वकीलों का कहना है कि शरीफ़ परिवार के दावे दस्तावेजी सबूतों से साबित नहीं होते और ये नहीं पता चल पाया कि मिल के लिए रक़म कहां से आई। उनका दावा है कि शरीफ़ ख़ानदान ने पाकिस्तान से ग़ैर-क़ानूनी तौर पर रक़म हासिल करके इस मिल में पैसा लगाया।

हुसैन नवाज़ का कहना है कि उन्हें अपने दादा से 50 लाख डॉलर से अधिक रक़म मिली थी जिसकी मदद से उन्होंने अल-अज़ीज़िया स्टील मिल्स क़ायम की।  उनके मुताबिक़ इस मिल के लिए अधिकतर पैसा क़तर के शाही ख़ानदान की ओर से मोहम्मद शरीफ़ के निवेदन पर दिया गया। मामले के लिए बनाई गई जाँच टीम के मुताबिक़ अल-अज़ीज़िया स्टील मिल के असली मालिक नवाज़ शरीफ़ ख़ुद हैं। पर एनएबी के अधिकारी भी अपने आरोपों को साबित करने से जुड़े सबूत पेश करने में असमर्थ रहे हैं। इस मुकदमे का फैसला आने के पहले ही मरियम नवाज शरीफ ने ट्विटर पर संदेश देने शुरू कर दिए थे। उनका कहना है कि एनएबी ने अपने अनुमानों को आधार पर फैसला सुनाया है।

इसी साल जुलाई महीने में एनएबी जज मोहम्मद बशीर ने नवाज़ शरीफ़, बेटी मरियम और दामाद मोहम्मद सफदर को एक और मामले में सज़ा सुनाई थी। अदालत ने नवाज़ शरीफ़ को दस साल, मरियम नवाज़ को सात साल की सज़ा सुनाई थी. अदालत ने मरियम नवाज़ पर बीस लाख पाउंड (लगभग पौने दो करोड़ भारतीय रुपए) का जुर्माना भी लगाया था। 19 सितम्बर को इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने तीनों की सज़ा को निलंबित करते हुए ज़मानत दे दी थी। शायद यह मामला भी अगली अदालत में जाएगा, पर उसके पहले देखना यह होगा कि पाकिस्तान की राजनीति किस रास्ते पर जाती है।




 








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