अमेरिकी सेना की वापसी की खबरें आने के बाद अब सवाल है
कि सीरिया में होगा क्या? सवाल यह भी है कि वहाँ अमेरिकी सेना क्या करने के लिए गई थी? दाएश से लड़ने या राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार का तख्ता पलटने, हिज़्बुल्ला को
हराने या कुर्दों का दमन रोकने? डोनाल्ड
ट्रम्प का कहना है कि हम तो इस्लामिक स्टेट से लड़ने गए थे। अब वह तकरीबन हार चुका
है, इसलिए हम वापस जा रहे हैं। बाकी का काम तुर्की और सऊदी अरब देखेंगे। पर लगता
है कि अभी यहाँ काफी काम होना बाकी है। अमेरिकी सेना की वापसी के बाद इस इलाके में
रूस की भूमिका भी बढ़ी है।
सन 2011 में जब अरब देशों में जनांदोलन खड़े हो रहे थे,
सीरिया के शासक बशर अल-असद के खिलाफ भी बगावत शुरू हुई। बशर अल-असद ने 2000 में अपने पिता हाफेज़ अल-असद की जगह ली थी। अरब
देशों में सत्ता के ख़िलाफ़ शुरू हुई बगावत से प्रेरित होकर मार्च 2011 में सीरिया
के दक्षिणी शहर दाराआ में भी लोकतंत्र के समर्थन में आंदोलन शुरू हुआ था, जिसने
गृहयुद्ध का रूप ले लिया। उन्हीं दिनों इराक में इस्लामिक स्टेट उभार शुरू हुआ,
जिसने उत्तरी और पूर्वी सीरिया के काफी हिस्सों पर क़ब्ज़ा कर लिया। इस लड़ाई में ईरान, लेबनान, इराक़, अफ़गानिस्तान
और यमन से हज़ारों की संख्या में शिया लड़ाके सीरिया की सेना की तरफ़ से लड़ने के
लिए पहुंचे।
कुर्द-राज्य बनने के आसार
सीरिया,
इराक और तुर्की की सीमा पर बड़ी संख्या में कुर्दों की आबादी भी है। वे स्वतंत्र
देश बनाने के लिए अलग लड़ रहे हैं। कुर्दिश भाषा के अक्षरों से बने उनके ग्रुप का नाम है वाईपीजी। इनका मुकाबला इस्लामिक स्टेट के अलावा
तुर्की से भी है। इनके प्रभाव क्षेत्र में तुर्की का इलाका भी आता है। इस्लामिक
स्टेट से लड़ने के लिए इन्हें अमेरिका ने हथियार दिए हैं। तुर्की को लगता है कि अमेरिकी
सेना की वापसी के बाद कुर्द लड़ाके सीरिया के उत्तर-पूर्वी हिस्से और इराक़ के
उत्तर-पश्चिमी हिस्से पर कब्जा करके अपना एक नया मुल्क खड़ा कर लेंगे। तुर्की
चाहता है कि अमेरिका इनके हथियार रखवाए। अमेरिका का कहना है कि जबतक इस्लामिक
स्टेट से लड़ाई चल रही है, तबतक ऐसा सम्भव
नहीं।
असद सरकार मजबूत हुई
इन सबके बीच बशर अल-सद की सीरिया सरकार की स्थिति अब सुरक्षित
हो गई है। देश के काफी बड़े हिस्से पर अब उसका नियंत्रण है। उसके विरोधी भी
करीब-करीब पराजित हैं। सम्भव है कि आने वाले समय में इस इलाके में स्थिरता कायम
करने में असद सरकार की भूमिका बढ़े। पहले सब उसके खिलाफ थे, पर इस दौरान उसने अपने
इलाकों में स्थिति पर काबू पा लिया।
असद
सरकार की मौजूदगी रूस के लिए ज़रूरी है। वजह ये है कि मध्य पूर्व में सीरिया ही एक
मुल्क है जिसकी वजह से इस क्षेत्र में रूस अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकता है। अमेरिका ने इस्लामिक
स्टेट के नाम पर हस्तक्षेप किया था, पर लड़ाई असद सरकार के खिलाफ भी थी। सीरिया ने
रूस से मदद माँगी और सितम्बर 2015 में रूस
भी असद के पक्ष में इस लड़ाई में कूद पड़ा। रूसी सेना ने आईएस और सीरिया के बागियों,
दोनों के खिलाफ मोर्चे खोले। रूस के प्रवेश से लड़ाई पूरी तरह से इस्लामिक स्टेट
के खिलाफ हो गई और असद को हटाने की माँग पीछे चली गई।
इससे
ईरान का उत्साह भी बढ़ा। ईरान पहले से इराक में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ अपने
सैनिक भेज रहा था। सीरिया में वह असद सरकार के पक्ष में था। इस मदद से असद को बल
मिला और उनके विरोधियों पर कई तरफ से मार पड़ने लगी। असद के खिलाफ रासायनिक हथियारों
के इस्तेमाल के आरोप भी लगे, पर अंततः लाभ उनकी सेना को ही मिला।
इतना
होने के बाद भी अभी लड़ाई पूरी तरह खत्म नहीं होगी। सीरिया के पूर्वोत्तर में
इस्लामिक स्टेट का प्रभाव कम हो जाएगा, पर कुर्दों का प्रभाव बना रहेगा। दूसरे इस
लड़ाई के बाद पश्चिम एशिया में रूस की भूमिका बढ़ जाएगी। रूस के ईरान और तुर्की के
साथ रिश्तों में भी बेहतरी हुई है। इस इलाके में ही नहीं अफ़ग़ानिस्तान में भी रूस
की भूमिका बढ़ी है।
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