सोमवार, 13 मई 2019

‘सायबर-युद्ध’ के द्वार पर खड़ी दुनिया


शनिवार 4 मई को इसराइली सेना ने गज़ा पट्टी में हमस के ठिकानों पर जबर्दस्त हमले किए। हाल के वर्षों में इतने बड़े हमले इसराइल ने पहली बार किए हैं। हालांकि लड़ाई ज्यादा नहीं बढ़ी, महत्वपूर्ण बात यह थी कि इन इसराइली हमलों में दूसरे ठिकानों के अलावा हमस के सायबर केन्द्र को निशाना बनाया गया। हाल में हमस ने सायबर-स्पेस पर हमले बोले थे। सायबर-अटैक के खिलाफ जवाबी प्रहार का यह दूसरा उदाहरण है। इसके पहले अगस्त 2015 में अमेरिका ने ऐसे कारनामे को अंजाम दिया था। इस लिहाज से इसराइली हमला इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। अब हम सायबर-युद्ध के और करीब पहुँच गए हैं।


अभी तक हम मानकर चल रहे थे कि सायबर हमले केवल कम्प्यूटर सिस्टम्स को निशाना बनाते हैं। लक्ष्य होता है शत्रु की अर्थ-व्यवस्था तथा तकनीकी सिस्टम्स को ध्वस्त करना। आमतौर पर इसे भौतिक-युद्ध से फर्क अदृश्य-युद्ध का अंग माना जाता है। पर शनिवार 4 मई को इसराइली सेना ने गज़ा पट्टी में हमस के ठिकानों पर जबर्दस्त हमले किए। हाल के वर्षों में इतने बड़े हमले इसराइल ने पहली बार किए हैं और इनमें निशाना दूसरे ठिकानों के अलावा हमस के सायबर केन्द्र हैं। इन केन्द्रों से हाल में हमस ने इसराइल के सायबर-स्पेस पर हमले बोले थे। सायबर-वार के खिलाफ जवाबी प्रहार का यह दूसरा उदाहरण है। इसके पहले सन 2015 में अमेरिका ने ऐसे कारनामे को अंजाम दिया था।
मनुष्य जाति का अस्तित्व प्रकृति के साथ युद्ध करते-करते कायम हुआ है। मानवता का इतिहास, युद्धों का इतिहास है। युद्ध की तकनीक और उपकरण बदलते रहे हैं। तीन साल पहले नेटो ने घोषित किया था कि भविष्य की लड़ाइयों का मैदान सायबर स्पेस होगा। इस लिहाज से शनिवार को हुआ इसराइली हमला  इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। अब हम सायबर-युद्ध के और करीब पहुँच गए हैं। इसराइली रक्षा-विशेषज्ञों का दावा है कि हाल में हमस ने इसराइल पर सायबर हमला बोला था, जिसमें वे विफल रहे। इसके जवाब में हमने हमस के सायबर केन्द्र को तबाह कर दिया है।
इसराइल ने इस बात का ज्यादा विवरण नहीं दिया है कि हमस ने सायबर हमला कब और किस तरह से किया, पर यह साफ कहा कि यह सायबर हमला था, जिसका जवाब हमने हवाई हमले से किया। इसराइल के इस हमले में खुफिया एजेंसी शिन बेट भी शामिल थी, जिसे इसराइल की अदृश्य एजेंसी माना जाता है। अगस्त 2015 में अमेरिका ने ब्रिटिश नागरिक जुनैद हुसेन की हत्या के लिए सीरिया के रक्का में ड्रोन हमला किया था। जुनैद हुसेन इस्लामिक स्टेट का सायबर एक्सपर्ट था, जिसने अमेरिका सेना के कुछ भेद ऑनलाइन उजागर कर दिए थे। माना जाता है कि वह सायबर वॉर की शुरुआत थी। इसराइल और हमस के बीच लगातार चल रहे रॉकेट युद्ध के बीच के बीच इस परिघटना से भावी युद्धों के संकेत मिलने लगे हैं।

भविष्य के युद्ध
लड़ाई की विनाशकारी प्रवृत्तियों के बावजूद तीसरे विश्व-युद्ध का खतरा हमेशा बना रहेगा। अमेरिकी लेखक पीटर सिंगर और ऑगस्ट के 2015 में प्रकाशित उपन्यास ‘द गोस्ट फ्लीट’ का विषय तीसरा विश्व-युद्ध है, जिसमें अमेरिका, चीन और रूस की हिस्सेदारी होगी। उपन्यास के कथाक्रम से ज्यादा रोचक है उस तकनीक का वर्णन जो इस युद्ध में काम आई। यह उपन्यास भविष्य के युद्ध की झलक दिखाता है।
आने वाले वक्त की लड़ाई में शामिल सारे योद्धा परम्परागत फौजियों जैसे वर्दीधारी नहीं होंगे। काफी लोग कम्प्यूटर कंसोल के पीछे बैठकर काम करेंगे। काफी लोग नागरिकों के भेस में होंगे, पर छापामार सैनिकों की तरह महत्वपूर्ण ठिकानों पर हमला करके नागरिकों के बीच मिल जाएंगे। काफी लोग ऐसे होंगे जो अराजकता का फायदा उठाकर अपने हितों को पूरा करेंगे।
यह उपन्यास आने वाले दौर के युद्ध के सामाजिक-आर्थिक और तकनीकी पहलुओं को उजागर करता है। इस उपन्यास में लेखक बताते हैं कि अमेरिका, रूस और चीन की यह लड़ाई प्रशांत महासागर में नहीं लड़ी जाएगी, बल्कि दो उन ठिकानों पर लड़ी जाएगी, जहाँ आज तक कभी लड़ाई नहीं हुई। ये जगहें हैं स्पेस और सायबर स्पेस। उपन्यास में युद्ध की शुरूआत मैरियाना ट्रेंच के पास चीन को गैस का विशाल भंडार मिलने के बाद होती है। इस लड़ाई में अमेरिकी नौसेना रेलगंस का इस्तेमाल करती है। उसके सैनिकों को सिंथेटिक ‘स्टिम्स’ दिए जाते हैं, जिनके कारण वे ज्यादा चौकस, चौकन्ने होते हैं। आकाश पर कम्प्यूटर नियंत्रित ड्रोन उड़ते हैं। सभी पक्षों के सैनिक ‘विज़ चश्मे’ पहनते हैं जिनमें गूगल ग्लास जैसे कैमरे लगे हैं।
नए युद्ध-क्षेत्र
हालांकि ‘द गोस्ट फ्लीट’ में काफी बड़ी लड़ाई परम्परागत जमीन, सागर और आसमान में लड़ी गई है, पर स्पेस और सायबर स्पेस तक इसका विस्तार होने से नए आयाम नजर आए हैं। कहना मुश्किल है कि आने वाले समय में परम्परागत तरीकों से सैनिकों की टुकड़ियाँ देश की सीमा पार करके दूसरे देश की सीमा में घुसेंगी। आने वाले युद्ध शायद देशों के बीच हों भी नहीं। आतंकवादी गिरोहों, समुद्री डाकुओं, माफिया और संगठित गिरोहों और आर्थिक अपराधियों के बीच हों। हो सकता है राष्ट्रीय सेनाओं का इनसे मुकाबला हो या ये आपस में लड़ें।
अभी विश्व समुदाय का इतना एकीकरण नहीं हुआ है कि राष्ट्रीय टकराव खत्म हो जाए, पर युद्ध में शामिल होने के इच्छुक नए लड़ाके जरूर सामने आए हैं। ये आमने-सामने की बड़ी लड़ाई लड़ने के बजाय अचानक किसी खास इलाके में हमला करके भागने वाले और खासतौर से नई तकनीक का इस्तेमाल करने वाले लोग होंगे। एक हद तक सीमा-विवादों के कारण राष्ट्रीय टकरावों का खतरा भी बना ही रहेगा, पर उन्हें टालने का मिकैनिज्म भी विकसित होता जाएगा।
‘द गोस्ट फ्लीट’ में चीन के कम्प्यूटर हैकर अपनी सेनाओं को रास्ता दिखाते हैं। वे अमेरिका के सैनिक और नागरिक प्रतिष्ठानों के नेटवर्क में ‘मैलवेयर’ डाल देते हैं। ये प्रोग्राम मोबाइल डिवाइसों और कम्प्यूटर नेटवर्कों में छिपकर बैठ जाते हैं और अमेरिका के सैनिक मुख्यालय पैंटागन का थ्री-डी मैप तैयार कर देते हैं। वे अमेरिकी ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्‍टम (जीपीएस) को अस्त-व्यस्त कर देते हैं जिनके सहारे अमेरिकी शस्त्र प्रणाली काम करती है। चीनी हैकरों में सबसे तेज है एक किशोरी जो एक इंजीनियरी कॉलेज से आई है और जो चीन की सायबर मिलीशिया यूनिट की सदस्य है।
व्यवस्थाओं का संहार
भविष्य में ऐसे हथियारों का इस्तेमाल किया जाएगा जो अदृश्य हों, जिनका पता न लगाया जा सके और जो सैटेलाइट, कंप्यूटर, रेडार और विमानों सहित सब कुछ बंद कर सकते हों। ये हैं इलेक्ट्रो मैग्नेटिक हथियार। इनमें इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन का इस्तेमाल किया जाता है। ये हथियार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जाम या पूरी तरह से तबाह कर सकते हैं।
सायबर हमले सैनिकों की जान नहीं लेते, पर वे व्यवस्था को ध्वस्त करते हैं। मनुष्य समाज सिस्टम्स, यानी व्यवस्थाओं की बुनियाद पर टिका है। हमारा समूचा कार्य-संचालन आर्थिक, व्यावसायिक, बैंकिंग, शैक्षिक, ऊर्जा, परिवहन, यातायात, न्यायिक, नागरिक-सुविधाओं यहाँ तक की रक्षा-व्यवस्थाओं पर टिका है। सायबर हमला इन व्यवस्थाओं को घाल करता है या पूरी तरह ध्वस्त कर सकता है। इससे पूरा सामाजिक जीवन एकबारगी ध्वस्त हो सकता है।
स्टक्सनेट की कारगुजारी
सायबर हमलों की खास बात यह है कि इसमें हमलावर का पता लगाना बेहद मुश्किल काम है। सन 2010 में ‘स्टक्सनेट’ के बारे में दुनिया को जानकारी मिली। यह कंप्यूटर वायरस है जो किसी औद्योगिक प्रणाली को पूरी तरह ठप कर सकता है। कहा जाता है कि अमेरिका ने ईरान के यूरेनियम परिष्करण ठिकानों में इस वायरस की घुसपैठ करा दी थी। इस मैलवेयर के बारे में दुनिया को जानकारी भी नहीं थी। लम्बे समय तक यह काम करता रहा।
ईरानी नाभिकीय संयंत्रों की खराबी तो विशेषज्ञों की जानकारी में आ गईं, पर उसकी वजह वे समझ नहीं पाए। यह सायबर अटैक था, पर एकदम अलग किस्म का। सामान्यतः हमें लगता है कि सायबर अटैक किसी कम्प्यूटर सिस्‍टम को हैक करता है। बैंक से पैसा निकालने के लिए या गोपनीय दस्तावेजों को पढ़ने के लिए, इंजीनियरी की डिजाइनें चोरी करने के लिए। ज्यादातर वायरस कुछ चुराने के लिए थे, पर यह वायरस कुछ चलाने के लिए बना था। यानी कि सिस्टम-संचालकों के दिमाग में ही कीड़ा बैठा दिया गया।
माना जाता है कि अमेरिका और इसराइल ने इस वायरस का इस्तेमाल किया था। न जाने कितने किस्म के वायरसों की ईजाद इस बीच हो गई है। ये वायरस आपके कम्प्यूटरों के व्यवहार को बदल सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो आपके दिलो-दिमाग में झोल डाल सकते हैं। आपको गलत फैसले करने पर मजबूर कर सकते हैं। हम रासायनिक, नाभिकीय और अंतरिक्ष युद्धों के बाबत अंतरराष्ट्रीय संधियाँ कर रहे हैं। जैसे-जैसे हथियारों का विकास होता जाएगा, हम उनके दुरुपयोग को रोकने के लिए वैश्विक संधियाँ करेंगे, पर व्यक्ति या समाज की दुर्बुद्धि रोकने की संधि तो नहीं हो पाएगी।
कृत्रिम मेधा का युग
युद्ध का मतलब है अनैतिकता। क्या नैतिकता का वैश्वीकरण भी होगा? होगा तो कैसे? धीरे-धीरे दुनिया डिजिटल तकनीक पर जा रही है। सारे औद्योगिक और व्यापारिक काम-काज इस तकनीक के हवाले होने वाले हैं। इसलिए इनपर हमला करके किसी भी व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाई जा सकती हैं। महाभारत का युद्ध न्यायपूर्ण व्यवस्था की स्थापना के लिए लड़ा गया था। सभी युद्ध न्याय की स्थापना के लिए लड़े जाते हैं। कैसे पता लगेगा कि न्याय किसके साथ है?
हम युद्ध के अर्थ में केवल खून-खराबे की ही बात क्यों सोचें? बगैर खून-खराबे वाले युद्ध भी हो सकते हैं। केवल हितों की रक्षा के युद्ध। निजी या किसी बड़े समुदाय के हितों की रक्षा के वास्ते। इसके अलावा गलती से इनके दुरुपयोग का खतरा भी है। जैसे कोई हथियार गलती से छूट सकता है, वैसे ही सायबर-अस्त्र भी गलती से छूट सकता है। दरअसल ये सवाल सायबर तकनीक के विकास से जुड़े हैं और सायबर शिक्षण-प्रशिक्षण से सम्बद्ध लोगों को इन सवालों पर विचार करना है।
कुछ साल पहले इसराइली लेखक युवाल नोह हरारी ने लिखा था, हाल तक उच्च मेधा को अति विकसित चेतना का ही एक पहलू समझा जाता था। केवल चेतन जीव ही ऐसे काम करते पाए जाते थे जिनके लिए अच्छे खासे दिमाग की ज़रूरत पड़ती थी- जैसे शतरंज खेलना, कार चलाना, बीमारियों का पता लगा लेना या फिर लेख लिख पाना। पर आज हम ऐसी नई तरह की अचेतन बुद्धिमत्ता विकसित कर रहे हैं जो इस तरह के कामों को इंसानों से कहीं ज्यादा बेहतर कर सकती है। इस परिघटना ने एक अनूठे सवाल को जन्म दिया है-दोनों में कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है, बुद्धिमत्ता या चेतना?
इंसानों में दो तरह की बुनियादी क्षमताएं होती हैं: शारीरिक क्षमताएं और संज्ञानात्मक क्षमताएं। पिछली दो सदियों में मशीनों ने शारीरिक क्षमताओं में इंसानों को पीछे छोड़ दिया, इंसान ज्यादातर संज्ञानात्मक कार्यों की ओर केन्द्रित होते चले गए। जरा सोचिये क्या होगा जब इस मामले में भी कम्प्यूटरी एल्गोरिद्म हमें पछाड़ देंगे? विज्ञान फंतासियों पर आधारित फिल्मों में मनुष्य और कम्पयूटरों की लड़ाइयों में विजय हमेशा मनुष्यों की होती है, क्योंकि मान लिया जाता है कि मनुष्यों में कोई जादुई चिंगारी होती है जिसे कम्प्यूटर न तो समझ सकते हैं और न ही हासिल कर सकते हैं।
जब तक हम यह मानते रहे कि इंसानों के आत्मा होती है, इस बात पर विश्वास करना बहुत आसान था कि आत्मा के पास चंद ऐसी जादुई शक्तियां होती हैं जो कम्प्यूटरी एल्गोरिद्म की पहुंच से हमेशा बाहर रहेंगी। लेकिन विज्ञान आत्माओं में विश्वास नहीं करता। सायबर तकनीक के विकास का एक ऐसा चरण भी आ सकता है, जब मैलवेयर रक्तबीज की तरह अपने आप नए मैलवेयर बनाने लगें। यह फिल्मी-फंतासी नहीं है। सायबर तकनीक इंसान के काबू से बाहर भी जा सकती है।  

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भरतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना टी. बालासरस्वती जी की 101वीं जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. रोचक आंकलन। यह बात तो तय है कि जिस हिसाब से हम लोग तकनीक के ऊपर निर्भर होते जा रहे हैं उस हिसाब से अगर यह व्यवस्था चरमराई तो उथल पुथल मच जाएगी। इसलिये पूरी तरह से ऑटोमेशन से हमे बचना चाहिए।

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