सूडान में लोकतांत्रिक आंदोलन अपनी तार्किक परिणति की ओर बढ़ रहा है। पिछले कुछ महीनों से चल रहे आंदोलन के बाद 32 साल से कुर्सी पर जमे बैठे सूडान के स्वयंभू शासक उमर अल-बशीर को गद्दी छोड़नी पड़ी है, पर उनके स्थान पर फौजी कौंसिल ने सत्ता हथिया ली है। देश की युवा आबादी आंदोलन की अगली कतार में खड़ी है और सेना पर लगातार दबाव बना रही है कि वह भी रास्ते से हटे। सेना के साथ नागरिकों की लगातार बातचीत चल रही है। सेना ने तत्काल नागरिक शासन की उनकी मांग को मानने से इनकार कर दिया है, जिसके कारण पिछले रविवार को बातचीत एक मोड़ पर आकर ठहर गई है।
जनता के प्रतिनिधियों का कहना है कि सेना नागरिक परिषद को सत्ता सौंप दे। आंदोलनकारी सूडानी प्रोफेशनल्स एसोसिएशन (एसपीए) के प्रवक्ता मोहम्मद अल-अमीन ने सेना परिसर में जमा हजारों प्रदर्शनकारियों की भीड़ को बताया कि हम फौजी कौंसिल के साथ अपनी बातचीत स्थगित कर रहे हैं, पर हमारा धरना-प्रदर्शन जारी रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी लड़ाई खत्म नहीं हुई है, क्योंकि फौजी कौंसिल बशीर की बेदखल सरकार से कोई खास अलग नहीं है। फौजी अफसरों की दिलचस्पी लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने में नहीं है।
देश के नए फौजी शासक लेफ्टिनेंट जनरल अब्देल फ़तह अल-बुरहान ने रविवार को सरकारी टेलीविजन पर कहा कि हम जनता के हाथों में सत्ता सौंपने को तैयार हैं, पर अराजकता के इस दौर में नहीं। अभी व्यवस्था को कायम होने देना चाहिए। हमें सत्ता को कोई मोह नहीं है, हम इससे चिपके नहीं रहेंगे। हम चाहते हैं कि आंदोलनकारी कोई ऐसा प्रस्ताव पेश करें, जिसे स्वीकार किया जा सके।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सैनिक नेतृत्व की दरअसल हमारी बातों में दिलचस्पी है ही नहीं। इसमें शामिल लोग वही हैं, जो अब तक सत्ता में बैठे थे। वे नई व्यवस्था क्यों चाहेंगे? हमारे पास अब आंदोलन को तेज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अमेरिका की उस सूची में सूडान का नाम भी है, जिसमें आतंकवादी देशों के नाम दर्ज हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि फौजी शासन हटे, तो इस सूची से सूडान का नाम हट सकता है। इस सिलसिले में बातचीत के लिए सूडानी नागरिकों का एक दल अमेरिका जाने वाला है। सूडान के इस आंदोलन को अमेरिकी मीडिया का समर्थन भी मिल रहा है।
हालांकि प्रदर्शनकारियों में बहुत से नौजवान इस बात से खुश हैं कि फौजी शासक जनता को सत्ता सौंपने को तैयार हैं, पर उनके समझदार नेताओं का कहना है कि ये बातें समय काटने और भरमाने के लिए की जा रही हैं। सेना इस बात के लिए भी तैयार है कि किसी असैनिक को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया जाए, पर वह सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी छोड़ने को तैयार नहीं है। आंदोलनकारी इस मामले में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की मदद लेने को तैयार भी नहीं हैं। इन दोनों देशों ने तीन अरब डॉलर की सहायता देने की पेशकश की है। इसपर आंदोलनकारियों ने कहा कि हमें सऊदी समर्थन नहीं चाहिए। आप अपना पैसा अपने पास रखें। अल जजीरा ने एक स्थानीय कारोबारी को उधृत किया है कि हम अपने देश का निर्माण अपने साधनों से कर लेंगे। हमें अच्छा नेतृत्व चाहिए विदेशी सहायता नहीं। जिस वक्त उमर अल-बशीर हमारे लोगों की हत्या कर रहा था, तब ये देश क्यों नहीं बोले?
इसके पहले सऊदी अरब और यूएई ने कहा था कि हम 50 करोड़ डॉलर सूडान के केन्द्रीय बैंक में जमा कर देंगे, जिससे सूडानी पौंड पर दबाव कम हो जाएगा और मुद्रा-विनिमय की दिक्कतें दूर हो जाएंगी। सहायता से जुड़ी शेष धनराशि भोजन, औषधियों, ईंधन वगैरह पर खर्च की जा सकती है। आंदोलनकारियों को लगता है कि यह सब फौजी शासन को बचाने की चाल है।
जनता के प्रतिनिधियों का कहना है कि सेना नागरिक परिषद को सत्ता सौंप दे। आंदोलनकारी सूडानी प्रोफेशनल्स एसोसिएशन (एसपीए) के प्रवक्ता मोहम्मद अल-अमीन ने सेना परिसर में जमा हजारों प्रदर्शनकारियों की भीड़ को बताया कि हम फौजी कौंसिल के साथ अपनी बातचीत स्थगित कर रहे हैं, पर हमारा धरना-प्रदर्शन जारी रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी लड़ाई खत्म नहीं हुई है, क्योंकि फौजी कौंसिल बशीर की बेदखल सरकार से कोई खास अलग नहीं है। फौजी अफसरों की दिलचस्पी लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने में नहीं है।
देश के नए फौजी शासक लेफ्टिनेंट जनरल अब्देल फ़तह अल-बुरहान ने रविवार को सरकारी टेलीविजन पर कहा कि हम जनता के हाथों में सत्ता सौंपने को तैयार हैं, पर अराजकता के इस दौर में नहीं। अभी व्यवस्था को कायम होने देना चाहिए। हमें सत्ता को कोई मोह नहीं है, हम इससे चिपके नहीं रहेंगे। हम चाहते हैं कि आंदोलनकारी कोई ऐसा प्रस्ताव पेश करें, जिसे स्वीकार किया जा सके।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सैनिक नेतृत्व की दरअसल हमारी बातों में दिलचस्पी है ही नहीं। इसमें शामिल लोग वही हैं, जो अब तक सत्ता में बैठे थे। वे नई व्यवस्था क्यों चाहेंगे? हमारे पास अब आंदोलन को तेज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अमेरिका की उस सूची में सूडान का नाम भी है, जिसमें आतंकवादी देशों के नाम दर्ज हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि फौजी शासन हटे, तो इस सूची से सूडान का नाम हट सकता है। इस सिलसिले में बातचीत के लिए सूडानी नागरिकों का एक दल अमेरिका जाने वाला है। सूडान के इस आंदोलन को अमेरिकी मीडिया का समर्थन भी मिल रहा है।
हालांकि प्रदर्शनकारियों में बहुत से नौजवान इस बात से खुश हैं कि फौजी शासक जनता को सत्ता सौंपने को तैयार हैं, पर उनके समझदार नेताओं का कहना है कि ये बातें समय काटने और भरमाने के लिए की जा रही हैं। सेना इस बात के लिए भी तैयार है कि किसी असैनिक को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया जाए, पर वह सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी छोड़ने को तैयार नहीं है। आंदोलनकारी इस मामले में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की मदद लेने को तैयार भी नहीं हैं। इन दोनों देशों ने तीन अरब डॉलर की सहायता देने की पेशकश की है। इसपर आंदोलनकारियों ने कहा कि हमें सऊदी समर्थन नहीं चाहिए। आप अपना पैसा अपने पास रखें। अल जजीरा ने एक स्थानीय कारोबारी को उधृत किया है कि हम अपने देश का निर्माण अपने साधनों से कर लेंगे। हमें अच्छा नेतृत्व चाहिए विदेशी सहायता नहीं। जिस वक्त उमर अल-बशीर हमारे लोगों की हत्या कर रहा था, तब ये देश क्यों नहीं बोले?
इसके पहले सऊदी अरब और यूएई ने कहा था कि हम 50 करोड़ डॉलर सूडान के केन्द्रीय बैंक में जमा कर देंगे, जिससे सूडानी पौंड पर दबाव कम हो जाएगा और मुद्रा-विनिमय की दिक्कतें दूर हो जाएंगी। सहायता से जुड़ी शेष धनराशि भोजन, औषधियों, ईंधन वगैरह पर खर्च की जा सकती है। आंदोलनकारियों को लगता है कि यह सब फौजी शासन को बचाने की चाल है।
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