बुधवार, 24 अप्रैल 2019

अमेरिका-चीन व्यापार वार्ता का निर्णायक दौर


पिछले साल के अंत में ब्यूनस आयर्स में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के हाशिए पर हुई वार्ताओं के कारण अमेरिका और चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध में फिलहाल कुछ समय के लिए विराम लग गया था। तब ह्वाइट हाउस ने घोषणा की थी कि यदि 90 दिन के भीतर दोनों पक्ष किसी समझौते पर नहीं पहुँचे, तो चीनी माल पर जो टैरिफ अभी 10 फीसदी है, वह 25 फीसदी हो जाएगा। अमेरिका के अल्टीमेटम का समय पूरा हो रहा है और इन दिनों दोनों देशों के बीच वॉशिंगटन में व्यापार वार्ता फिर शुरू हो गई है। अमेरिका चाहता है कि 1 मार्च से नया समझौता लागू हो और जो भी हो लम्बे समय के लिए हो।

चीन के साथ ही नहीं, इन दिनों ट्रम्प प्रशासन दुनिया के सभी देशों के साथ अपने कारोबारी रिश्तों को पुनर्परिभाषित करने के काम में लगा हुआ है। यानी कि दुनिया की करीब 40 फीसदी अर्थ-व्यवस्था इस नई परिभाषा के दायरे में आने वाली है। रविवार 17 फरवरी को राष्ट्रपति ट्रम्प के पास अमेरिका के वाणिज्य विभाग ने एक प्रस्ताव भेजा है कि देश में ऑटो-आयात को रोका जाए। यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर होगा। यदि यह कदम उठाया गया, तो इसका विपरीत प्रभाव अमेरिका के मित्र देशों पर ही पड़ेगा। इनमें यूरोपीय देशों के अलावा जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं। सरकार ने अभी इसके बारे में विस्तार से विवरण नहीं दिया है और न यह बताया है कि उसकी रणनीति क्या होगी। जो भी होगा, उसका फैसला मई के मध्य तक करना होगा।
ट्रम्प प्रशासन के सामने इस वक्त नॉर्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के पुनर्लिखित प्रारूप पर संसद की स्वीकृति लेने का काम है। दोनों राजनीतिक दलों के बड़ी संख्या में सदस्यों ने कहा है कि वे ट्रम्प की व्यापार नीति में बड़े बदलावों के बगैर इसे स्वीकार नहीं करेंगे। ट्रम्प प्रशासन ईयू और जापान के साथ नए द्विपक्षीय समझौते करना चाहता है, पर फिलहाल उसका सारा ध्यान चीन और मैक्सिको तथा कनाडा पर है। सन 2020 के चुनाव में उतरने के पहले वे इस मामले में अपनी सफलता को साबित करना चाहते हैं।

अमेरिका के साथ कुछ समय से चीन में बातचीत चल रही थी। अब वह वॉशिंगटन में हो रही है। अमेरिका चाहता है कि चीन की बुनियादी नीतियों में बदलाव हो। यानी कि अर्थ-व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप खत्म हो। सरकारी अड़ंगे के कारण अमेरिकी कारोबारियों को चीन में परेशानी का सामना करना पड़ता है। क्या यह सम्भव है? अमेरिका के भीतर से ट्रम्प पर दबाव है कि चीन को संरचनात्मक बदलाव के लिए मजबूर करें। ट्रम्प प्रशासन ने पिछले साल तकरीबन आधे चीनी आयात पर ड्यूटी बढ़ा दी। इनमें धातु, सोलर पैनल और वॉशिंग मशीन शामिल हैं। इसके अलावा अमेरिका यह भी चाहता है कि चीन उससे भारी मात्रा में सामान और सेवाएं खरीदे।

अब तक की बातचीत से लगता है कि चीन इस बात पर सहमत है कि व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए वह अमेरिकी माल ज्यादा खरीदेगा। अलबत्ता बौद्धिक सम्पदा की चोरी और चीनी माल को मिल रही सब्सिडी के मामले में सहमति नहीं बन पा रही है। अमेरिकी शिकायत है कि चीन में रिवर्स इंजीनियरी की मदद से कॉपीराइट की चोरी होती है। वॉशिंगटन में हो रही उच्चस्तरीय वार्ता में अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटाइजर के अलावा वित्तमंत्री स्टीवन मूचिन, वाणिज्यमंत्री विलबर रॉस, आर्थिक मामलों के सलाहकार लैरी कुडलो और वाणिज्य सलाहकार पीटर नवारो शामिल हैं। चीन के उप प्रधानमंत्री ल्यू ही भी अमेरिका आए हुए हैं।



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