सोवियत संघ के विघटन के बाद नब्बे के दशक में ऐसा लगा था कि शीत-युद्ध खत्म हो गया है, पर हाल की घटनाएं इशारा कर रही हैं कि यह एक नए रूप में फिर से शुरू हो गया है। दुनिया अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुँची है। उसे कुछ और झटकों की जरूरत है। सीरिया, ईरान, अफगानिस्तान और वेनेजुएला की घटनाओं और अमेरिका-चीन कारोबारी टकराव की बारीकियों पर जाएं, तो जाहिर होगा कि सबके पीछे वही सब है, जो शीत-युद्ध के दौरान होता रहा था। अब अमेरिका और रूस के बीच इंटरमीडिएट रेंज (आईएनएफ़) न्यूक्लियर फ़ोर्स संधि टूट रही है। पहले अमेरिका ने और फिर रूस ने इस संधि को स्थगित करने की घोषणा कर दी है। सन 1987 में हुई इस संधि ने अटलांटिक महासागर के आर-पार के इलाकों में शांति और सुरक्षा का माहौल बनाया था, जो अब खत्म होने लगा है।
पिछले साल 20 अक्तूबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि हम इस संधि से हाथ खींच रहे हैं। और अब व्लादिमीर पुतिन ने भी इसी आशय की घोषणा की है। अमेरिका का कहना है कि रूस तो इस संधि का लम्बे अर्से से उल्लंघन करता आया है और इक्कीसवीं सदी में वह कुछ ऐसी मिसाइलों का विकास कर रहा है, जो इस संधि के खिलाफ हैं। इस संधि के तहत दोनों देशों ने 500 से 5,500 किलोमीटर तक की दूरी तक मार करने वाली ऐसी मिसाइलों को त्यागने का फैसला किया था, जिन्हें जमीन से छोड़ा जाता है। इसके बाद दोनों देशों ने करीब 2600 मिसाइलों को नष्ट कर दिया। इस एक कदम से यूरोप में शांति और सुरक्षा का माहौल बन गया।
हाल के वर्षों में अमेरिका और उसके सहयोगी नेटो देशों ने आरोप लगाना शुरू किया कि रूस इस संधि का उल्लंघन कर रहा है। इतना ही नहीं सन 2007 में व्लादिमीर पुतिन ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कहा कि हम इस संधि से हटना चाहते हैं। रूस का कहना था कि उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, भारत, ईरान और पाकिस्तान जैसे देशों के पास ऐसे मिसाइल हैं, जिनपर इस संधि के तहत रोक है, तो फिर इसे जारी रखने की जरूरत क्या है। इसके बाद रूस ने एक वैश्विक संधि का प्रस्ताव किया, जिसमें दुनिया के सभी देश शामिल हों।
अमेरिकी आरोप है कि रूस ने इस पेशकश के समांतर अपने नए मिसाइल कार्यक्रम पर काम शुरू कर दिया। उसने ऐसे मिसाइल तैयार कर लिए हैं, जो इस संधि की भावना के विपरीत हैं, जबकि अमेरिका ने ऐसा कोई काम नहीं किया। सन 2017 में अमेरिका ने ऐसे आरोप लगाने शुरू किए थे। इसके लिए उसने रूसी मिसाइल नोवेटर 9एम729 का उल्लेख किया। अमेरिका के अनुसार यह मिसाइल आईएनएफ़ संधि का खुलेआम उल्लंघन है। और अब अपने स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण में ट्रंप ने कहा है कि अब हम ज्यादा मारक मिसाइलों का विकास करेंगे। यानी कि दुनिया में हथियारों की एक और रेस शुरू होने वाली है। इस संधि की शर्तों के अनुसार किसी एक पक्ष को इससे हटने के लिए छह महीने का समय देना होगा। यानी कि 1 फरवरी, 2019 को अमेरिका ने इस संधि से हटने की औपचारिक घोषणा कर दी है और अब वह जल्द ही किसी नए हथियार के विकास की सूचना देगा।
इंटरमीडिएट रेंज की मिसाइलें इसलिए ख़तरनाक मानी जाती हैं क्योंकि ये चंद मिनटों में तबाही मचा सकती हैं. इनमें अब ज्यादातर क्रूज़ मिसाइलें हैं। इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों (आईसीबीएम) की रेंज भले ही ज्यादा होती है, पर उन्हें दूरी तय करने में ज़्यादा समय लगता है और अब उन्हें रोकने वाले मिसाइल भी बनाए जा चुके हैं और उन्हें दूर से पकड़ने वाले रेडार भी हैं। आईएनएफ़ संधि की विशेषता थी कि दुनिया में पहली बार हथियार नष्ट किए गए थे। दूसरे यह संधि यूरोप-केन्द्रित थी। इस प्रकार यूरोप में काफी हद तक शांति का माहौल बन गया था, पर सन 2002 में अमेरिका एंटी बैलिस्टिक मिसाइल ट्रीटी से पीछे हट गया, जिसपर 1972 में दस्तख़त हुए थे।
ट्रंप उस हड़कंप को पैदा करने का काम कर रहे हैं, जिसके बाद सभी देश मिलकर नए समझौते करें। इस नई योजना में केवल हथियारों की ही नहीं कारोबार की भूमिका भी होगी। दुनिया हथियारों पर बहुत ज्यादा पैसा लगाने के काम की निरर्थकता समझने लगी है। हालात से परेशान होकर दुनिया के देशों को ऐसी संधियाँ करनी होंगी, जिनसे हथियारों पर नियंत्रण लगे। पर तभी होगा, जब दुनिया समझदार होगी। चूंकि अमेरिका के पास तकनीक और पूँजी दोनों हैं, इसलिए फिलहाल उसे हथियारों की नई दौड़ का लाभ मिलेगा। उसके प्रतिद्वंद्वी देश भी इस क्षेत्र में पूँजी निवेश को मजबूर होंगे। वह चाहता है कि प्रतिद्वंद्वी हथियार बनाने में उलझे रहें और वह वैश्विक अर्थव्यवस्था को मैनेज करता रहे। इन दिनों जो भी हो रहा है, उसके पीछे चीन का सामरिक शक्ति के रूप में उदय भी एक बड़ा कारण है। उम्मीद रखनी चाहिए कि हथियारों के बाबत दुनिया में एक नया समझौता होगा, जिसमें केवल रूस और अमेरिका ही नहीं चीन, भारत और दूसरे देश भी शामिल होंगे।
पिछले साल 20 अक्तूबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि हम इस संधि से हाथ खींच रहे हैं। और अब व्लादिमीर पुतिन ने भी इसी आशय की घोषणा की है। अमेरिका का कहना है कि रूस तो इस संधि का लम्बे अर्से से उल्लंघन करता आया है और इक्कीसवीं सदी में वह कुछ ऐसी मिसाइलों का विकास कर रहा है, जो इस संधि के खिलाफ हैं। इस संधि के तहत दोनों देशों ने 500 से 5,500 किलोमीटर तक की दूरी तक मार करने वाली ऐसी मिसाइलों को त्यागने का फैसला किया था, जिन्हें जमीन से छोड़ा जाता है। इसके बाद दोनों देशों ने करीब 2600 मिसाइलों को नष्ट कर दिया। इस एक कदम से यूरोप में शांति और सुरक्षा का माहौल बन गया।
हाल के वर्षों में अमेरिका और उसके सहयोगी नेटो देशों ने आरोप लगाना शुरू किया कि रूस इस संधि का उल्लंघन कर रहा है। इतना ही नहीं सन 2007 में व्लादिमीर पुतिन ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कहा कि हम इस संधि से हटना चाहते हैं। रूस का कहना था कि उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, भारत, ईरान और पाकिस्तान जैसे देशों के पास ऐसे मिसाइल हैं, जिनपर इस संधि के तहत रोक है, तो फिर इसे जारी रखने की जरूरत क्या है। इसके बाद रूस ने एक वैश्विक संधि का प्रस्ताव किया, जिसमें दुनिया के सभी देश शामिल हों।
अमेरिकी आरोप है कि रूस ने इस पेशकश के समांतर अपने नए मिसाइल कार्यक्रम पर काम शुरू कर दिया। उसने ऐसे मिसाइल तैयार कर लिए हैं, जो इस संधि की भावना के विपरीत हैं, जबकि अमेरिका ने ऐसा कोई काम नहीं किया। सन 2017 में अमेरिका ने ऐसे आरोप लगाने शुरू किए थे। इसके लिए उसने रूसी मिसाइल नोवेटर 9एम729 का उल्लेख किया। अमेरिका के अनुसार यह मिसाइल आईएनएफ़ संधि का खुलेआम उल्लंघन है। और अब अपने स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण में ट्रंप ने कहा है कि अब हम ज्यादा मारक मिसाइलों का विकास करेंगे। यानी कि दुनिया में हथियारों की एक और रेस शुरू होने वाली है। इस संधि की शर्तों के अनुसार किसी एक पक्ष को इससे हटने के लिए छह महीने का समय देना होगा। यानी कि 1 फरवरी, 2019 को अमेरिका ने इस संधि से हटने की औपचारिक घोषणा कर दी है और अब वह जल्द ही किसी नए हथियार के विकास की सूचना देगा।
इंटरमीडिएट रेंज की मिसाइलें इसलिए ख़तरनाक मानी जाती हैं क्योंकि ये चंद मिनटों में तबाही मचा सकती हैं. इनमें अब ज्यादातर क्रूज़ मिसाइलें हैं। इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों (आईसीबीएम) की रेंज भले ही ज्यादा होती है, पर उन्हें दूरी तय करने में ज़्यादा समय लगता है और अब उन्हें रोकने वाले मिसाइल भी बनाए जा चुके हैं और उन्हें दूर से पकड़ने वाले रेडार भी हैं। आईएनएफ़ संधि की विशेषता थी कि दुनिया में पहली बार हथियार नष्ट किए गए थे। दूसरे यह संधि यूरोप-केन्द्रित थी। इस प्रकार यूरोप में काफी हद तक शांति का माहौल बन गया था, पर सन 2002 में अमेरिका एंटी बैलिस्टिक मिसाइल ट्रीटी से पीछे हट गया, जिसपर 1972 में दस्तख़त हुए थे।
ट्रंप उस हड़कंप को पैदा करने का काम कर रहे हैं, जिसके बाद सभी देश मिलकर नए समझौते करें। इस नई योजना में केवल हथियारों की ही नहीं कारोबार की भूमिका भी होगी। दुनिया हथियारों पर बहुत ज्यादा पैसा लगाने के काम की निरर्थकता समझने लगी है। हालात से परेशान होकर दुनिया के देशों को ऐसी संधियाँ करनी होंगी, जिनसे हथियारों पर नियंत्रण लगे। पर तभी होगा, जब दुनिया समझदार होगी। चूंकि अमेरिका के पास तकनीक और पूँजी दोनों हैं, इसलिए फिलहाल उसे हथियारों की नई दौड़ का लाभ मिलेगा। उसके प्रतिद्वंद्वी देश भी इस क्षेत्र में पूँजी निवेश को मजबूर होंगे। वह चाहता है कि प्रतिद्वंद्वी हथियार बनाने में उलझे रहें और वह वैश्विक अर्थव्यवस्था को मैनेज करता रहे। इन दिनों जो भी हो रहा है, उसके पीछे चीन का सामरिक शक्ति के रूप में उदय भी एक बड़ा कारण है। उम्मीद रखनी चाहिए कि हथियारों के बाबत दुनिया में एक नया समझौता होगा, जिसमें केवल रूस और अमेरिका ही नहीं चीन, भारत और दूसरे देश भी शामिल होंगे।
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