न्यूज़ीलैंड को दुनिया के सबसे शांत देशों में एक माना जाता है। वहाँ पिछले 15 मार्च को क्राइस्टचर्च की दो मस्जिदों में हुए हत्याकांड ने दो तरह के संदेश एकसाथ दुनिया को दिए। इस घटना ने गोरे आतंकवाद के एक नए खतरे की ओर दुनिया का ध्यान खींचा है। दूसरी तरफ न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न और वहाँ की सरकार ने जिस तरह से अपने देश की मुस्लिम आबादी के प्रति अपने समर्थन और एकजुटता का परिचय दिया उसकी दुनियाभर में तारीफ हो रही है। ऐसे वक्त में जब दुनिया को साम्प्रदायिक नफरतों की आँधियों ने घेर रखा है, उनके इस व्यवहार ने इस हत्याकांड से जन्मी पीड़ा को कुछ कम किया है। खासतौर से मुस्लिम समुदाय ने इस महिला की जबर्दस्त तारीफ की है।
जैसिंडा अर्डर्न के प्रति प्रतीक रूप में सम्मान व्यक्त करते हुए संयुक्त अरब अमीरात ने अपनी विश्व-प्रसिद्ध इमारत बुर्ज खलीफा में शुक्रवार की रात उनकी तस्वीर प्रदर्शित की, जिसमें हिजाब लगाए वे एक व्यक्ति को गले लगाती हुई दिखाई दे रही हैं। यूएई के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘आपने (पीड़ितों के प्रति) जिस तरह की एकजुटता प्रदर्शित की उसने दुनियाभर के 1.5 अरब मुसलमानों का दिल जीता है।
जैसिंडा अर्डर्न ने गोलीबारी की खबर मिलने के बाद बगैर वक्त गँवाए सबसे पहले इसे आतंकी घटना बताया और कहा कि आतंकी खुद को किसी भी सोच का बताता हो, लेकिन वह आतंकवादी है और उसे देश के कानून के अनुसार सजा भी दी जाएगी। बाद में उन्होंने संसद में कहा, आप कभी मेरे मुख से उसका नाम नहीं सुनेंगे। वह मेरे लिए बेनाम है। एक आतंकवादी है।
आतंक का नया चेहरा
हत्यारे ने पूरी योजना के साथ इस कत्लेआम को जाम दिया था। उसने सोशल मीडिया पर इस हत्याकांड की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए अपने सिर पर एक कैमरा लगा रखा था। उसने यह खून-खराबा इसलिए किया क्योंकि उसका मानना था कि मुस्लिम प्रवासी और उनकी हिंसा, यूरोपियन गोरों के लिए बड़ा खतरा है। वह मुसलमानों से गहरी नफरत करता है और कट्टर नस्लवादी है। उसने इस घृणित हत्याकांड के पहले एक लम्बा वक्तव्य, जिसे उसने श्वेत राष्ट्रवाद का घोषणापत्र’ नाम दिया था, सोशल मीडिया पर पोस्ट भी किया। सच यह है कि उसने जिन-जिन बातों के कारण अपने ‘दुश्मनों’ की आलोचना की है, उन बातों को अपने व्यवहार में उतारा है।
हत्यारे ने साबित करना चाहा है कि मेरा समुदाय खतरे में है और यह सब आत्मरक्षा में कर रहा हूँ। खुद को उत्पीड़ित साबित किया। उसने अपनी गन पर 11 साल की एक स्वीडिश लड़की का नाम खुदवा रखा था, जिसकी 2017 के एक जेहादी हमले में हत्या हुई थी। पर उसने 50 निर्दोष बेटे-बेटियों, भाइयों-बहनों, और माता-पिताओं की जान ले ली। ब्रिटिश पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ ने लिखा है कि ब्रेंटन टेरैंट ने किसी किस्म की दया-करुणा व्यक्त नहीं की, क्योंकि उसने अपने निशाने पर आए लोगों को इंसान माना ही नहीं। इस अर्थ में गोरे-राष्ट्रवादियों और जेहादियों की मनोदशा में कोई अंतर नहीं है। दोनों के तौर-तरीके, नैतिकता और मनोदशा एक जैसी है।
हवा देता है सोशल मीडिया
इस प्रकार के कट्टरपंथी सोच को सोशल मीडिया से हवा मिलती है, जहाँ एक जैसी राय रखने वाले लोग विचारों और सूचनाओं का दान-प्रदान करते हैं। एक तरफ के कट्टरपंथी म्यांमार, सीरिया, शेनजियांग और अबू गरेब की फुटेज का इस्तेमाल करते हैं, तो दूसरे न्यूयॉर्क, रोटरहैम और बाली की तस्वीरें दिखाते हैं। हमारी जानकारी में जेहादी हिंसा की खबरें ज्यादा हैं, पर सच यह है कि गोरों की नस्ली हिंसा भी बढ़ी है। अभी तक की जानकारी के अनुसार हत्यारे ने अकेले ही इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। यानी कि कोई ग्रुप या गिरोह उसके पीछे नहीं था, पर उसके हथियारों पर जो नारे खुदे हुए थे, वे दुनियाभर के गोरे-हिंसावादियों के हैं।
उसके घोषणापत्र की भाषा भी वही है। सन 2012 में नॉर्वे में आंद्रे बेरिंग ब्रेविक ने गोलियाँ चलाकर 77 लोगों को मार डाला था। इस घटना में 240 लोग घायल हुए थे। उसने भी एक घोषणापत्र जारी किया था। ब्रेविक जेल में है। उसे मौत की सज़ा नहीं दी जा सकती, क्योंकि नॉर्वे में मौत की सज़ा नहीं दी जाती। अलबत्ता क्राइस्टचर्च के हत्यारे ने अपने घोषणापत्र में दावा किया है कि मैंने इस हत्याकांड की स्वीकृति ब्रेविक से ली थी। उधर ब्रेविक के वकील का कहना है कि यह सम्भव नहीं, क्योंकि उनके मुवक्किल का बाहरी दुनिया से बहुत कम सम्पर्क है।
दुनिया में ह्वाइट सुप्रीमैसिस्टों और नव-नाजियों के हमले बढ़ रहे हैं। अमेरिका में 9/11 के बाद हाल के वर्षों में इस्लामी कट्टरपंथियों के हमले कम हो गए हैं और मुसलमानों तथा एशियाई मूल के दूसरे लोगों पर हमले बढ़ गए हैं। वॉशिंगटन पोस्ट ने अपने विश्लेषण में ग्लोबल टेररिज्म डेटाबेस का हवाला देते हुए जानकारी दी है कि 2010-17 के बीच दक्षिणपंथी तत्वों ने 92 हमले किए हैं, जबकि जेहादियों के हमलों की संख्या 38 है। हालांकि यूरोप में जेहादी हमले ज्यादा हुए हैं, पर 2010 के बाद से दक्षिणपंथी आतंकी हमलों की संख्या में तेजी आई है।
गहराती घटाएं
दुनिया अभी तक आतंकवाद, हेट क्राइम, नस्लवाद और साम्प्रदायिकता जैसी बातों की परिभाषाओं में उलझी हुई है। ऐसे में श्वेत नस्लवाद, दक्षिणपंथी हिंसा और जेहादी आतंकवाद के पक्ष और विरोध में तर्क गढ़ना आसान है। यह हिंसा अचानक होती है और योजनाबद्ध भी। इन बातों को विचारधाराओं से जोड़ने के बाद संशय और भ्रम बढ़ जाते हैं, साथ ही श्वेत नस्लवाद जैसी बातों के खतरे छिपे रह जाते हैं। इस्लामिक स्टेट की क्रूरता की तस्वीरें मीडिया में आने के बाद सभी मुसलमानों के प्रति नफरत फैलाने का मौका मिला। इस बात को जानने-समझने की कोशिश नहीं की गई कि मुसलमानों की राय इस मामले में क्या है।
इस हिंसक दौर के गर्भ में इस्लामिक देशों की आपसी स्पर्धा पर नजरें डालना भी जरूरी है। पश्चिम एशिया में ईरान और सऊदी अरब की प्रतिस्पर्धा एकदम साफ है। सीरिया में यह टकराव अपने सबसे भयावह रूप में सामने आ चुका है। फिर सुन्नी मुसलमानों के नेतृत्व को लेकर सऊदी अरब और तुर्की की स्पर्धा है। हालांकि यह स्पर्धा हिंसक नहीं है, पर इसके व्यावहारिक मायने मौका आने पर दिखाई पड़ते हैं। क्राइस्ट चर्च हत्याकांड के तीन दिन बाद नीदरलैंड्स के उत्रेख्त शहर में एक ट्राम पर हमला हुआ, जिसमें तीन लोग मारे गए। इस सिलसिले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, जिसका जन्म तुर्की में हुआ था। क्राइस्टचर्च के हत्यारे ने अपने घोषणापत्र में लिखा है कि तुर्कों को यूरोप से निकालो और तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोवान की हत्या कर दो। इसपर अर्दोवान ने कहा कि यह सब इस्लाम और तुर्की के खिलाफ साजिश है।
शरणार्थी-विरोधी अभियान
यूरोप में पिछले कुछ दशकों से शरणार्थियों के विरोध में अभियान चल रहा है। ‘मुसलमान और अश्वेत लोग हमलावर हैं और वे हमारे हक मार रहे हैं।’ इस किस्म की बातें अब बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं। न्यूयॉर्क पर हुए हमले के बाद ऐसी बातें बढ़ीं और पिछले दो-तीन वर्षों में इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट के उदय और यूरोप में आई करीब 20 लाख शरणार्थियों की बाढ़ से कड़वाहट और ज्यादा बढ़ गई है। इसका फायदा दक्षिणपंथी राजनीति उठा रही है। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बान ने आव्रजकों को रोकने के लिए दीवार बना दी और खुद को क्रिश्चियन यूरोप का रक्षक घोषित कर दिया। जर्मनी, पोलैंड, स्वीडन और इटली हर जगह मुसलमान शरणार्थियों का विरोध हो रहा है। इन दिनों यूक्रेन दक्षिणपंथी राजनीति का केन्द्र बना हुआ है।
अमेरिका की आंतरिक राजनीति में भी दक्षिणपंथी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। सन 2008 में बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद से गोरों की नफरतें और बढ़ीं। ट्रम्प के उदय के पीछे एक भावना यह भी है। यूरोप के दक्षिणपंथी खुद को अमेरिका के दक्षिणपंथियों के साथ जोड़कर देखते हैं। अमेरिका में ‘आइडेंटिटी एवरोपा’ नाम का संगठन तेजी से बढ़ रहा है। अमेरिकी सेना के भीतर भी गोरों और अश्वेतों के बीच तनाव की खबरें हैं। ह्वाइट सुप्रीमेसी के पक्ष में अक्सर नारे और बैनर-पोस्टर लगाए जाने की खबरें आती हैं।
नफरत और कट्टरता की इन आँधियों को सबसे बड़ा सहारा सोशल मीडिया से मिला है। हम अपने देश में फेसबुक और ट्विटर को लेकर परेशान हैं, पर दुनिया में कई तरह के मीडिया हैं। क्राइस्टचर्च के हत्यारे ने हत्याकांड को फेसबुक पर लाइव स्ट्रीम किया था। उसने मैसेज डिस्कशन-बोर्ड ‘8चैन’ पर उसने अपने इरादों की घोषणा भी कर दी थी।
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बंदूक कानून बदलेगा
न्यूजीलैंड की सरकार ने इस हत्याकांड के बाद सबसे पहले उस शस्त्र कानून में सुधार का वादा किया, जिसकी वजह से हत्यारे को अर्ध-स्वचालित राइफलों सहित हमले में इस्तेमाल किए गए हथियारों को कानूनी रूप से खरीदने की अनुमति थी। इस बात की भी जानकारी हासिल की जा रही है कि कैसे वह सुरक्षा सेवाओं के रेडार पर नहीं आया। कैसे वह हमले की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में सफल हुआ। प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने कहा हमले में जिन सेमी-ऑटोमेटिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया है उन पर पाबंदी लगेगी। अर्डर्न ने कहा कि जब अप्रैल के पहले हफ़्ते में संसद की बैठक होगी तब इस प्रतिबंध के लिए क़ानून लाया जाएगा। नया नियम 11 अप्रैल तक आ सकता है। अभी जिनके पास ये हथियार हैं उन मालिकों से इसे वापस लेने के लिए एक नियम बनाया जाएगा।
अर्डर्न ने बताया कि अधिकारियों के अनुमान के मुताबिक़ इन हथियारों को वापस ख़रीदने में क़रीब 100 से 200 मिलियन डॉलर का खर्च आएगा, लेकिन हमें अपने समुदाय को सुरक्षित रखने के लिए यह क़ीमत ज़रूर चुकानी चाहिए। मैं विश्वास करती हूं कि न्यूज़ीलैंड के अधिकतर बंदूक मालिकों को समझ में आ जाएगा कि ये क़दम राष्ट्र हित में उठाया गया है। हमें पता है कि आप में अधिकतर लोगों ने क़ानून के दायरे में ये हथियार लिए होंगे। कीट नियंत्रण, पशु कल्याण समेत 0।22 कैलिबर राइफल और छोटे बंदूक जिनका बत्तख के शिकार में इस्तेमाल किया जाता है उन्हें इस नए नियम के दायरे से बाहर रखा जाएगा।
न्यूज़ीलैंड में बंदूक रखने के क़ानून के तहत, ए कैटेगरी के हथियार सेमी-ऑटोमेटिक हो सकते हैं जिनमें एक बार में सात गोलियां भरी जा सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में इस समय कुल 15 लाख हथियार हैं। क़ानून के तकनीकी पहलुओं पर प्रतिक्रिया के लिए एक 'सिलेक्ट कमेटी' गठित की जाएगी और संसद के इसी सत्र के दौरान हथियार रखने के नियमों में बदलाव किए जाएंगे। न्यूज़ीलैंड में बंदूक रखने की न्यूनतम उम्र 16 साल और मिलिट्री स्टाइल सेमी-ऑटोमेटिक हथियारों को रखने के लिए न्यूनतम उम्र 18 साल है। बंदूक रखने के लिए यहां लाइसेंस होना ज़रूरी है। एक बार लाइसेंस मिलने के बाद व्यक्ति चाहे जितनी चाहे उतनी बंदूकें ख़रीद सकता है।
न्यूजीलैंड की इस त्वरित गति के मुकाबले अमेरिका में बंदूकों की संस्कृति पर गौर करें, तो बड़ा फर्क पाएंगे। सन 1791 में पास हुए अमेरिकी संविधान के दूसरे संशोधन ने नागरिकों को हथियार रखने का अधिकार दिया था। यह व्यक्ति का आत्मरक्षा का अधिकार है, पर आज स्थितियाँ बदल चुकी हैं। आज व्यक्ति की रक्षा की जिम्मेदारी राज्य पर है। पर अमेरिका इस कानून को बदल नहीं पाया है।
संडे नवजीवन में प्रकाशित
जैसिंडा अर्डर्न के प्रति प्रतीक रूप में सम्मान व्यक्त करते हुए संयुक्त अरब अमीरात ने अपनी विश्व-प्रसिद्ध इमारत बुर्ज खलीफा में शुक्रवार की रात उनकी तस्वीर प्रदर्शित की, जिसमें हिजाब लगाए वे एक व्यक्ति को गले लगाती हुई दिखाई दे रही हैं। यूएई के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘आपने (पीड़ितों के प्रति) जिस तरह की एकजुटता प्रदर्शित की उसने दुनियाभर के 1.5 अरब मुसलमानों का दिल जीता है।
जैसिंडा अर्डर्न ने गोलीबारी की खबर मिलने के बाद बगैर वक्त गँवाए सबसे पहले इसे आतंकी घटना बताया और कहा कि आतंकी खुद को किसी भी सोच का बताता हो, लेकिन वह आतंकवादी है और उसे देश के कानून के अनुसार सजा भी दी जाएगी। बाद में उन्होंने संसद में कहा, आप कभी मेरे मुख से उसका नाम नहीं सुनेंगे। वह मेरे लिए बेनाम है। एक आतंकवादी है।
आतंक का नया चेहरा
हत्यारे ने पूरी योजना के साथ इस कत्लेआम को जाम दिया था। उसने सोशल मीडिया पर इस हत्याकांड की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए अपने सिर पर एक कैमरा लगा रखा था। उसने यह खून-खराबा इसलिए किया क्योंकि उसका मानना था कि मुस्लिम प्रवासी और उनकी हिंसा, यूरोपियन गोरों के लिए बड़ा खतरा है। वह मुसलमानों से गहरी नफरत करता है और कट्टर नस्लवादी है। उसने इस घृणित हत्याकांड के पहले एक लम्बा वक्तव्य, जिसे उसने श्वेत राष्ट्रवाद का घोषणापत्र’ नाम दिया था, सोशल मीडिया पर पोस्ट भी किया। सच यह है कि उसने जिन-जिन बातों के कारण अपने ‘दुश्मनों’ की आलोचना की है, उन बातों को अपने व्यवहार में उतारा है।
हत्यारे ने साबित करना चाहा है कि मेरा समुदाय खतरे में है और यह सब आत्मरक्षा में कर रहा हूँ। खुद को उत्पीड़ित साबित किया। उसने अपनी गन पर 11 साल की एक स्वीडिश लड़की का नाम खुदवा रखा था, जिसकी 2017 के एक जेहादी हमले में हत्या हुई थी। पर उसने 50 निर्दोष बेटे-बेटियों, भाइयों-बहनों, और माता-पिताओं की जान ले ली। ब्रिटिश पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ ने लिखा है कि ब्रेंटन टेरैंट ने किसी किस्म की दया-करुणा व्यक्त नहीं की, क्योंकि उसने अपने निशाने पर आए लोगों को इंसान माना ही नहीं। इस अर्थ में गोरे-राष्ट्रवादियों और जेहादियों की मनोदशा में कोई अंतर नहीं है। दोनों के तौर-तरीके, नैतिकता और मनोदशा एक जैसी है।
हवा देता है सोशल मीडिया
इस प्रकार के कट्टरपंथी सोच को सोशल मीडिया से हवा मिलती है, जहाँ एक जैसी राय रखने वाले लोग विचारों और सूचनाओं का दान-प्रदान करते हैं। एक तरफ के कट्टरपंथी म्यांमार, सीरिया, शेनजियांग और अबू गरेब की फुटेज का इस्तेमाल करते हैं, तो दूसरे न्यूयॉर्क, रोटरहैम और बाली की तस्वीरें दिखाते हैं। हमारी जानकारी में जेहादी हिंसा की खबरें ज्यादा हैं, पर सच यह है कि गोरों की नस्ली हिंसा भी बढ़ी है। अभी तक की जानकारी के अनुसार हत्यारे ने अकेले ही इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। यानी कि कोई ग्रुप या गिरोह उसके पीछे नहीं था, पर उसके हथियारों पर जो नारे खुदे हुए थे, वे दुनियाभर के गोरे-हिंसावादियों के हैं।
उसके घोषणापत्र की भाषा भी वही है। सन 2012 में नॉर्वे में आंद्रे बेरिंग ब्रेविक ने गोलियाँ चलाकर 77 लोगों को मार डाला था। इस घटना में 240 लोग घायल हुए थे। उसने भी एक घोषणापत्र जारी किया था। ब्रेविक जेल में है। उसे मौत की सज़ा नहीं दी जा सकती, क्योंकि नॉर्वे में मौत की सज़ा नहीं दी जाती। अलबत्ता क्राइस्टचर्च के हत्यारे ने अपने घोषणापत्र में दावा किया है कि मैंने इस हत्याकांड की स्वीकृति ब्रेविक से ली थी। उधर ब्रेविक के वकील का कहना है कि यह सम्भव नहीं, क्योंकि उनके मुवक्किल का बाहरी दुनिया से बहुत कम सम्पर्क है।
दुनिया में ह्वाइट सुप्रीमैसिस्टों और नव-नाजियों के हमले बढ़ रहे हैं। अमेरिका में 9/11 के बाद हाल के वर्षों में इस्लामी कट्टरपंथियों के हमले कम हो गए हैं और मुसलमानों तथा एशियाई मूल के दूसरे लोगों पर हमले बढ़ गए हैं। वॉशिंगटन पोस्ट ने अपने विश्लेषण में ग्लोबल टेररिज्म डेटाबेस का हवाला देते हुए जानकारी दी है कि 2010-17 के बीच दक्षिणपंथी तत्वों ने 92 हमले किए हैं, जबकि जेहादियों के हमलों की संख्या 38 है। हालांकि यूरोप में जेहादी हमले ज्यादा हुए हैं, पर 2010 के बाद से दक्षिणपंथी आतंकी हमलों की संख्या में तेजी आई है।
गहराती घटाएं
दुनिया अभी तक आतंकवाद, हेट क्राइम, नस्लवाद और साम्प्रदायिकता जैसी बातों की परिभाषाओं में उलझी हुई है। ऐसे में श्वेत नस्लवाद, दक्षिणपंथी हिंसा और जेहादी आतंकवाद के पक्ष और विरोध में तर्क गढ़ना आसान है। यह हिंसा अचानक होती है और योजनाबद्ध भी। इन बातों को विचारधाराओं से जोड़ने के बाद संशय और भ्रम बढ़ जाते हैं, साथ ही श्वेत नस्लवाद जैसी बातों के खतरे छिपे रह जाते हैं। इस्लामिक स्टेट की क्रूरता की तस्वीरें मीडिया में आने के बाद सभी मुसलमानों के प्रति नफरत फैलाने का मौका मिला। इस बात को जानने-समझने की कोशिश नहीं की गई कि मुसलमानों की राय इस मामले में क्या है।
इस हिंसक दौर के गर्भ में इस्लामिक देशों की आपसी स्पर्धा पर नजरें डालना भी जरूरी है। पश्चिम एशिया में ईरान और सऊदी अरब की प्रतिस्पर्धा एकदम साफ है। सीरिया में यह टकराव अपने सबसे भयावह रूप में सामने आ चुका है। फिर सुन्नी मुसलमानों के नेतृत्व को लेकर सऊदी अरब और तुर्की की स्पर्धा है। हालांकि यह स्पर्धा हिंसक नहीं है, पर इसके व्यावहारिक मायने मौका आने पर दिखाई पड़ते हैं। क्राइस्ट चर्च हत्याकांड के तीन दिन बाद नीदरलैंड्स के उत्रेख्त शहर में एक ट्राम पर हमला हुआ, जिसमें तीन लोग मारे गए। इस सिलसिले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, जिसका जन्म तुर्की में हुआ था। क्राइस्टचर्च के हत्यारे ने अपने घोषणापत्र में लिखा है कि तुर्कों को यूरोप से निकालो और तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोवान की हत्या कर दो। इसपर अर्दोवान ने कहा कि यह सब इस्लाम और तुर्की के खिलाफ साजिश है।
शरणार्थी-विरोधी अभियान
यूरोप में पिछले कुछ दशकों से शरणार्थियों के विरोध में अभियान चल रहा है। ‘मुसलमान और अश्वेत लोग हमलावर हैं और वे हमारे हक मार रहे हैं।’ इस किस्म की बातें अब बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं। न्यूयॉर्क पर हुए हमले के बाद ऐसी बातें बढ़ीं और पिछले दो-तीन वर्षों में इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट के उदय और यूरोप में आई करीब 20 लाख शरणार्थियों की बाढ़ से कड़वाहट और ज्यादा बढ़ गई है। इसका फायदा दक्षिणपंथी राजनीति उठा रही है। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बान ने आव्रजकों को रोकने के लिए दीवार बना दी और खुद को क्रिश्चियन यूरोप का रक्षक घोषित कर दिया। जर्मनी, पोलैंड, स्वीडन और इटली हर जगह मुसलमान शरणार्थियों का विरोध हो रहा है। इन दिनों यूक्रेन दक्षिणपंथी राजनीति का केन्द्र बना हुआ है।
अमेरिका की आंतरिक राजनीति में भी दक्षिणपंथी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। सन 2008 में बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद से गोरों की नफरतें और बढ़ीं। ट्रम्प के उदय के पीछे एक भावना यह भी है। यूरोप के दक्षिणपंथी खुद को अमेरिका के दक्षिणपंथियों के साथ जोड़कर देखते हैं। अमेरिका में ‘आइडेंटिटी एवरोपा’ नाम का संगठन तेजी से बढ़ रहा है। अमेरिकी सेना के भीतर भी गोरों और अश्वेतों के बीच तनाव की खबरें हैं। ह्वाइट सुप्रीमेसी के पक्ष में अक्सर नारे और बैनर-पोस्टर लगाए जाने की खबरें आती हैं।
नफरत और कट्टरता की इन आँधियों को सबसे बड़ा सहारा सोशल मीडिया से मिला है। हम अपने देश में फेसबुक और ट्विटर को लेकर परेशान हैं, पर दुनिया में कई तरह के मीडिया हैं। क्राइस्टचर्च के हत्यारे ने हत्याकांड को फेसबुक पर लाइव स्ट्रीम किया था। उसने मैसेज डिस्कशन-बोर्ड ‘8चैन’ पर उसने अपने इरादों की घोषणा भी कर दी थी।
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बंदूक कानून बदलेगा
न्यूजीलैंड की सरकार ने इस हत्याकांड के बाद सबसे पहले उस शस्त्र कानून में सुधार का वादा किया, जिसकी वजह से हत्यारे को अर्ध-स्वचालित राइफलों सहित हमले में इस्तेमाल किए गए हथियारों को कानूनी रूप से खरीदने की अनुमति थी। इस बात की भी जानकारी हासिल की जा रही है कि कैसे वह सुरक्षा सेवाओं के रेडार पर नहीं आया। कैसे वह हमले की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में सफल हुआ। प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने कहा हमले में जिन सेमी-ऑटोमेटिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया है उन पर पाबंदी लगेगी। अर्डर्न ने कहा कि जब अप्रैल के पहले हफ़्ते में संसद की बैठक होगी तब इस प्रतिबंध के लिए क़ानून लाया जाएगा। नया नियम 11 अप्रैल तक आ सकता है। अभी जिनके पास ये हथियार हैं उन मालिकों से इसे वापस लेने के लिए एक नियम बनाया जाएगा।
अर्डर्न ने बताया कि अधिकारियों के अनुमान के मुताबिक़ इन हथियारों को वापस ख़रीदने में क़रीब 100 से 200 मिलियन डॉलर का खर्च आएगा, लेकिन हमें अपने समुदाय को सुरक्षित रखने के लिए यह क़ीमत ज़रूर चुकानी चाहिए। मैं विश्वास करती हूं कि न्यूज़ीलैंड के अधिकतर बंदूक मालिकों को समझ में आ जाएगा कि ये क़दम राष्ट्र हित में उठाया गया है। हमें पता है कि आप में अधिकतर लोगों ने क़ानून के दायरे में ये हथियार लिए होंगे। कीट नियंत्रण, पशु कल्याण समेत 0।22 कैलिबर राइफल और छोटे बंदूक जिनका बत्तख के शिकार में इस्तेमाल किया जाता है उन्हें इस नए नियम के दायरे से बाहर रखा जाएगा।
न्यूज़ीलैंड में बंदूक रखने के क़ानून के तहत, ए कैटेगरी के हथियार सेमी-ऑटोमेटिक हो सकते हैं जिनमें एक बार में सात गोलियां भरी जा सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में इस समय कुल 15 लाख हथियार हैं। क़ानून के तकनीकी पहलुओं पर प्रतिक्रिया के लिए एक 'सिलेक्ट कमेटी' गठित की जाएगी और संसद के इसी सत्र के दौरान हथियार रखने के नियमों में बदलाव किए जाएंगे। न्यूज़ीलैंड में बंदूक रखने की न्यूनतम उम्र 16 साल और मिलिट्री स्टाइल सेमी-ऑटोमेटिक हथियारों को रखने के लिए न्यूनतम उम्र 18 साल है। बंदूक रखने के लिए यहां लाइसेंस होना ज़रूरी है। एक बार लाइसेंस मिलने के बाद व्यक्ति चाहे जितनी चाहे उतनी बंदूकें ख़रीद सकता है।
न्यूजीलैंड की इस त्वरित गति के मुकाबले अमेरिका में बंदूकों की संस्कृति पर गौर करें, तो बड़ा फर्क पाएंगे। सन 1791 में पास हुए अमेरिकी संविधान के दूसरे संशोधन ने नागरिकों को हथियार रखने का अधिकार दिया था। यह व्यक्ति का आत्मरक्षा का अधिकार है, पर आज स्थितियाँ बदल चुकी हैं। आज व्यक्ति की रक्षा की जिम्मेदारी राज्य पर है। पर अमेरिका इस कानून को बदल नहीं पाया है।
संडे नवजीवन में प्रकाशित
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