कई तरह के विवादों के बीच नाइजीरिया के आम चुनाव हो गए और मुहम्मदु बुहारी फिर से देश के राष्ट्रपति चुने गए हैं। इस बार के चुनाव में भी धाँधली की शिकायतें हैं, पर संतोष इस बात का है कि दक्षिण पश्चिम अफ्रीका के इस देश में लोकतंत्र धीरे-धीरे जड़ें जमा रहा है। मुहम्मदु बुहारी ने पूर्व उपराष्ट्रपति अतीकु अबूबकर को पराजित किया। बुहारी की पार्टी ऑल प्रोग्रेसिव कांग्रेस को एक करोड़ 52 लाख वोट मिले और अतीकु की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को एक करोड़ 13 लाख। देश के कुल आठ करोड़ वोटरों में से करीब दो करोड़ 65 लाख लोगों ने ही मतदान में हिस्सा लिया। यह संख्या एक नए विकासशील लोकतंत्र के लिए उत्साहवर्धक नहीं है। दूसरे विकासशील देशों की तरह नाइजीरिया में मतदान के दौरान धांधली की शिकायतें हैं। पर मतदान प्रतिशत कम रहने की क्या वजह हो सकती है? क्या लोगों को मतदान से रोका गया? हारे हुए प्रत्याशी का कहना है कि सेना के अत्यधिक इस्तेमाल से ऐसा हुआ। कुछ पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि मतदाताओं की दिलचस्पी लोकतांत्रिक व्यवस्था में नहीं है।
ये चुनाव पिछली 16 फरवरी को ही हो जाते, पर अचानक उन्हें स्थगित कर दिया गया। उसका कारण जो भी रहा हो, पर पिछले हफ्ते कई स्थानों पर अज्ञात बंदूकधारियों के हमलों में 66 लोगों की मृत्यु होने के बाद लगता है कि सरकार को किसी किस्म का अंदेशा पहले से था। राष्ट्रीय चुनाव आयोग की तैयारियाँ ठीक नहीं थीं। इस वजह से आयोग ने मतदान के कुछ घंटे पहले चुनाव टालने का फैसला किया। यों तो आयोग ने इसकी कई वजहें गिनाई थीं। इनमें तोड़फोड़, हिंसा, खराब मौसम और लॉजिस्टिक्स से जुड़ी दिक्कतें शामिल थीं, पर वास्तव में आयोग की अपनी तैयारियाँ अधूरी थीं।
इस अव्यवस्था के लिए सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष एडम्स ओशियोमहोल, राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी और सीनेट के अध्यक्ष बुकोला सराकी तीनों जिम्मेदार थे। देश की सरकार ने नवम्बर 2017 में पेश 2018 के बजट में चुनाव की आवश्यकताओं को शामिल ही नहीं किया। उधर सरकार और विधायिका के बीच टकराव अलग चलता रहा। बड़ी मुश्किल से पिछले साल अक्तूबर में सप्लीमेंट्री बजट पास हो पाया। यानी चुनाव आयोग को चुनाव के चार महीने पहले ही साधन मिल पाए।
बोको हराम का प्रभाव
दक्षिण अफ्रीका के बाद अफ्रीकी देशों में नाइजीरिया सबसे महत्वपूर्ण देश है। आबादी के लिहाज से तो सबसे बड़ा देश है ही। यहाँ की संघीय व्यवस्था में 36 राज्य और एक अबुजा का संघीय राजधानी क्षेत्र है। नाइजीरिया लोकतांत्रिक सेक्युलर राज्य है। सन 1999 में सैनिक शासन की समाप्ति के बाद से यहाँ का लोकतंत्र निरंतर चल रहा है। करीब साढ़े अठारह करोड़ की आबादी के साथ यह दुनिया का सातवें नम्बर का देश है। यह दुनिया की बीसवीं सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था है और सन 2014 में इसने दक्षिण अफ्रीका को पीछे छोड़ दिया। पेट्रोलियम के कारण यहाँ की अर्थ-व्यवस्था अपेक्षाकृत बेहतर है, पर मानव-विकास के लिहाज से अभी यह देश काफी पीछे है।
यहाँ की आबादी में करीब आधे मुसलमान, करीब 40 फीसदी ईसाई और 10 फीसदी अन्य हैं। देश के दक्षिणी हिस्से में ईसाई आबादी ज्यादा है और उत्तर में मुसलिम। उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया में साम्प्रदायिक टकरावों का असर यहाँ भी पड़ा है। सन 2002 के बाद से यहाँ बोको हराम नाम के संगठन का प्रभाव बढ़ा है, जो देश में सेक्युलर व्यवस्था की जगह शरिया पर आधारित इस्लामी व्यवस्था स्थापित करना चाहता है।
सन 2010 के दंगों में यहाँ साम्प्रदायिक हिंसा में 500 से ज्यादा लोग मारे गए थे। मई 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने कहा था कि बोको हराम के हमलों में कम से कम 12,000 लोगों की हत्याएं हुईं हैं और 8,000 से ज्यादा घायल हुए हैं। सन 2014 में 276 स्कूली लड़कियों के अपहरण के कारण भी बोको हराम खबरों में था। उस वक्त पड़ोसी देशों चाड, केमरून और नाइजर ने नाइजीरिया के साथ मिलकर अभियान छेड़ा था। सन 2016 में यहाँ के ईसाई बहुल दस गाँवों में करीब 500 लोगों को फुलानी मुस्लिम चरवाहों ने मार डाला। इस हिंसा के जवाब में ईसाई कबीले भी हमले बोलते रहे हैं।
छठे चुनाव
सन 1999 में लोकतंत्र की स्थापना के बाद से नाइजीरिया के ये छठे चुनाव हैं। हालांकि राष्ट्रपति पद के लिए 70 प्रत्याशी मैदान में थे, पर मुकाबला दो के बीच था। इनमें पहले थे स्वयं राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी और दूसरे पूर्व उपराष्ट्रपति अतीकु अबूबकर। मुहम्मदु बुहारी ने 1983 में कुछ समय के लिए देश पर शासन किया था। तब उन्होंने सैनिक विद्रोह के ज़रिए सत्ता हासिल की थी। उन्हें देश के उत्तरी इलाक़े में भारी समर्थन हासिल है। नाइजीरिया के चुनाव में हिंसा का हमेशा से बोलबाला रहा है। भारत की तरह यहाँ की राजनीति में भी जाति, धर्म, कबीलों का इस्तेमाल जमकर होता है। राजनीतिक दल जातीय-साम्प्रदायिक भावनाओं का जमकर दोहन करते हैं। मानवाधिकार संस्थाएं चुनाव के दौरान यहाँ की प्रवृत्तियों का अध्ययन करती हैं और उनका निष्कर्ष है कि इस वर्ष की हिंसा 2015 के चुनावों की तुलना में कम थी।
सन 2015 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में पहली बार विपक्ष की जीत हुई थी। मुहम्मदु बुहारी ने गुडलक जोनाथन को परास्त किया था। देश में पहली बार कोई सत्ताधारी राष्ट्रपति चुनाव हारा। 1960 में ब्रिटेन से आज़ादी के बाद से ही नाइजीरिया में कई बार तख़्तापलट और धांधली से भरपूर चुनाव हुए हैं, पर पिछले पाँच चुनाव निरंतर हुए हैं। जोनाथन 2010 से नाइजीरिया के राष्ट्राध्यक्ष थे। 2011 में चुनाव जीतने से पहले वे देश के अंतरिम नेता थे।
ये चुनाव पिछली 16 फरवरी को ही हो जाते, पर अचानक उन्हें स्थगित कर दिया गया। उसका कारण जो भी रहा हो, पर पिछले हफ्ते कई स्थानों पर अज्ञात बंदूकधारियों के हमलों में 66 लोगों की मृत्यु होने के बाद लगता है कि सरकार को किसी किस्म का अंदेशा पहले से था। राष्ट्रीय चुनाव आयोग की तैयारियाँ ठीक नहीं थीं। इस वजह से आयोग ने मतदान के कुछ घंटे पहले चुनाव टालने का फैसला किया। यों तो आयोग ने इसकी कई वजहें गिनाई थीं। इनमें तोड़फोड़, हिंसा, खराब मौसम और लॉजिस्टिक्स से जुड़ी दिक्कतें शामिल थीं, पर वास्तव में आयोग की अपनी तैयारियाँ अधूरी थीं।
इस अव्यवस्था के लिए सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष एडम्स ओशियोमहोल, राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी और सीनेट के अध्यक्ष बुकोला सराकी तीनों जिम्मेदार थे। देश की सरकार ने नवम्बर 2017 में पेश 2018 के बजट में चुनाव की आवश्यकताओं को शामिल ही नहीं किया। उधर सरकार और विधायिका के बीच टकराव अलग चलता रहा। बड़ी मुश्किल से पिछले साल अक्तूबर में सप्लीमेंट्री बजट पास हो पाया। यानी चुनाव आयोग को चुनाव के चार महीने पहले ही साधन मिल पाए।
बोको हराम का प्रभाव
दक्षिण अफ्रीका के बाद अफ्रीकी देशों में नाइजीरिया सबसे महत्वपूर्ण देश है। आबादी के लिहाज से तो सबसे बड़ा देश है ही। यहाँ की संघीय व्यवस्था में 36 राज्य और एक अबुजा का संघीय राजधानी क्षेत्र है। नाइजीरिया लोकतांत्रिक सेक्युलर राज्य है। सन 1999 में सैनिक शासन की समाप्ति के बाद से यहाँ का लोकतंत्र निरंतर चल रहा है। करीब साढ़े अठारह करोड़ की आबादी के साथ यह दुनिया का सातवें नम्बर का देश है। यह दुनिया की बीसवीं सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था है और सन 2014 में इसने दक्षिण अफ्रीका को पीछे छोड़ दिया। पेट्रोलियम के कारण यहाँ की अर्थ-व्यवस्था अपेक्षाकृत बेहतर है, पर मानव-विकास के लिहाज से अभी यह देश काफी पीछे है।
यहाँ की आबादी में करीब आधे मुसलमान, करीब 40 फीसदी ईसाई और 10 फीसदी अन्य हैं। देश के दक्षिणी हिस्से में ईसाई आबादी ज्यादा है और उत्तर में मुसलिम। उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया में साम्प्रदायिक टकरावों का असर यहाँ भी पड़ा है। सन 2002 के बाद से यहाँ बोको हराम नाम के संगठन का प्रभाव बढ़ा है, जो देश में सेक्युलर व्यवस्था की जगह शरिया पर आधारित इस्लामी व्यवस्था स्थापित करना चाहता है।
सन 2010 के दंगों में यहाँ साम्प्रदायिक हिंसा में 500 से ज्यादा लोग मारे गए थे। मई 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने कहा था कि बोको हराम के हमलों में कम से कम 12,000 लोगों की हत्याएं हुईं हैं और 8,000 से ज्यादा घायल हुए हैं। सन 2014 में 276 स्कूली लड़कियों के अपहरण के कारण भी बोको हराम खबरों में था। उस वक्त पड़ोसी देशों चाड, केमरून और नाइजर ने नाइजीरिया के साथ मिलकर अभियान छेड़ा था। सन 2016 में यहाँ के ईसाई बहुल दस गाँवों में करीब 500 लोगों को फुलानी मुस्लिम चरवाहों ने मार डाला। इस हिंसा के जवाब में ईसाई कबीले भी हमले बोलते रहे हैं।
छठे चुनाव
सन 1999 में लोकतंत्र की स्थापना के बाद से नाइजीरिया के ये छठे चुनाव हैं। हालांकि राष्ट्रपति पद के लिए 70 प्रत्याशी मैदान में थे, पर मुकाबला दो के बीच था। इनमें पहले थे स्वयं राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी और दूसरे पूर्व उपराष्ट्रपति अतीकु अबूबकर। मुहम्मदु बुहारी ने 1983 में कुछ समय के लिए देश पर शासन किया था। तब उन्होंने सैनिक विद्रोह के ज़रिए सत्ता हासिल की थी। उन्हें देश के उत्तरी इलाक़े में भारी समर्थन हासिल है। नाइजीरिया के चुनाव में हिंसा का हमेशा से बोलबाला रहा है। भारत की तरह यहाँ की राजनीति में भी जाति, धर्म, कबीलों का इस्तेमाल जमकर होता है। राजनीतिक दल जातीय-साम्प्रदायिक भावनाओं का जमकर दोहन करते हैं। मानवाधिकार संस्थाएं चुनाव के दौरान यहाँ की प्रवृत्तियों का अध्ययन करती हैं और उनका निष्कर्ष है कि इस वर्ष की हिंसा 2015 के चुनावों की तुलना में कम थी।
सन 2015 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में पहली बार विपक्ष की जीत हुई थी। मुहम्मदु बुहारी ने गुडलक जोनाथन को परास्त किया था। देश में पहली बार कोई सत्ताधारी राष्ट्रपति चुनाव हारा। 1960 में ब्रिटेन से आज़ादी के बाद से ही नाइजीरिया में कई बार तख़्तापलट और धांधली से भरपूर चुनाव हुए हैं, पर पिछले पाँच चुनाव निरंतर हुए हैं। जोनाथन 2010 से नाइजीरिया के राष्ट्राध्यक्ष थे। 2011 में चुनाव जीतने से पहले वे देश के अंतरिम नेता थे।
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