लैटिन अमेरिकी देश
वेनेजुएला में बगावती नेता ख़ुआन गोइदो के समर्थन में
आंदोलन बढ़ता चला जा रहा है। देश में महंगाई का बोलबाला है और सड़कों पर ब्लैक आउट
चल रहा है, क्योंकि बिजली नहीं है। पिछले रविवार को गोइदो के आह्वान पर देशभर से
लोग राजधानी काराकस पहुँचे और राष्ट्रपति निकोलस माडुरो के खिलाफ प्रदर्शन किया। जरूरत
की चीजें कम पड़ती जा रहीं हैं और आर्थिक संकट चरम पर है। दवाओं का भीषण अभाव पैदा
हो गया है।
उधर अमेरिका के
नेतृत्व में 56 देशों ने संसद के नेता ख़ुआन
गोइदो को राष्ट्रपति के रूप में मान्यता देकर माडुरो सरकार के खिलाफ अभियान छेड़
रखा है। सत्ता से
जुड़ी ज्यादातर संस्थाएं राष्ट्रपति निकोलस माडुरो के पीछे खड़ी हैं और सेना भी
उनके साथ है। अलबत्ता सेना के भीतर से भी नाराजगी के स्वर सुनाई पड़ने लगे हैं।
कहना मुश्किल है कि किस वक्त विस्फोट हो जाए। जनता का काफी बड़ा तबका अंतरिम
राष्ट्रपति के रूप में ख़ुआन गोइदो के
पीछे खड़ा होने लगा है।
अमेरिकी साजिश का आरोप
वेनेजुएला की इस
परिघटना को दुनिया दो तरीके से देख रही है। एक है अमेरिकी और दूसरा है वामपंथी
नजरिया। वामपंथियों का कहना है कि अमेरिका आज से नहीं लम्बे अरसे से वेनेजुएला की
वामपंथी व्यवस्था को गिराकर वहाँ अपनी पसंदीदा सरकार बैठाना चाहता है। वेनेजुएला
विदेश मंत्री जॉर्ज एरियाज़ का कहना है कि सन 2002 में तत्कालीन अमेरिकी
राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ह्यूगो शावेस की सरकार के तख्ता-पलट की कोशिश की थी।
इस फौजी कोशिश के कारण
शावेस 47 घंटे तक सत्ता से बाहर रहे, पर उसके बाद उनकी वापसी हो गई। इसके बाद 2007
में शावेस फिर से चुनाव जीते और तीसरी बार राष्ट्रपति बने। उसके बाद से पश्चिमी
देशों का दबाव बना ही हुआ है। सन 2013 में चौथी बार शावेस की जीत हुई। उसी साल
शावेस का निधन हो गया। उसके बाद उनकी जगह निकोलस माडुरो चुनाव जीतकर राष्ट्रपति
बने। वर्तमान संकट 2018 के चुनाव से शुरू हुआ है, जिसमें 50
फीसदी से भी ज्यादा वोटरों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। इस चुनाव में मुख्य
विरोधी दलों को भाग लेने नहीं दिया गया। इसमें माडुरो की जीत हुई, जिसे मानने से
विरोधी दलों ने इनकार कर दिया है।
पुलिस से झड़पें
आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हो रहीं
हैं। माडुरो की सत्तारूढ़ सोशलिस्ट पार्टी इस आंदोलन को अमेरिका द्वारा प्रायोजित
बता रही है। जबसे दुनिया में पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट हुई है वेनेजुएला का
आर्थिक संकट बढ़ गया है। उधर पश्चिमी देशों ने उसपर कई तरह की पाबंदियाँ लगा दी
हैं। देश में बिजली का संकट है। कई-कई दिन तक देश अंधेरे में रहता है। बगावती नेता
ख़ुआन गोइदो पिछले दिनों कुछ हफ्तों के निर्वासन के बाद राजधानी काराकस पहुँचे तो
आंदोलन में और तेजी आ गई। वस्तुतः
देश की वामपंथी सरकार के खिलाफ उन्होंने सन 2013 से मोर्चा खोल रखा है। हालांकि वे
सन 2006 में राजनीति में आ गए थे। उन दिनों देश के राष्ट्रपति ह्यूगो शावेस थे।
गोइदो ने सबसे पहले प्रेस की स्वतंत्रता का
झंडा बुलंद किया। उन्होंने अपनी पार्टी वोलंताद पॉपुलर की स्थापना की, जो आज
माडुरो के खिलाफ खड़ी है। वे राष्ट्रीय संसद के नेता हैं, जिसके आधार पर उन्होंने
खुद को देश का राष्ट्रपति घोषित किया है। गोइदो ने गत 23 जनवरी को ख़ुद को अंतरिम राष्ट्रपति
घोषित किया था, जिसके बाद से वेनेज़ुएला में सत्ता संघर्ष चल रहा है। इसके पहले 2018
के राष्ट्रपति पद के चुनाव में निकोलस माडुरो की जीत हुई थी, पर उनके विरोधियों का
कहना था कि चुनाव में धाँधली हुई थी। देश की न्यायपालिका और सेना राष्ट्रपति
माडुरो के अधीन है, जिसका लाभ वे उठा रहे हैं। उन्होंने अपने अधिकारों का इस्तेमाल
करते हुए देश की संसद पर बंदिशें लगाने की पहली कोशिश की। संसद ने इसका विरोध किया
और अंततः गोइदो को देश का अंतरिम राष्ट्रपति घोषित कर दिया।
गोइदो की विदेश
यात्राएं
देश के सुप्रीम कोर्ट
ने गोइदो की विदेश-यात्रा पर रोक लगा रखी है, पर इसका उल्लंघन करते हुए वे 23
फरवरी को कोलम्बिया चले गए। वहाँ से वे ब्राजील, पैराग्वे, अर्जेंटीना और इक्वेडोर
गए और मानवीय सहायता की अपील की। इस यात्रा के बाद वे 4 मार्च को ही वेनेजुएला वापस
आए हैं। उनके आने के बाद से आंदोलन में तेजी आई है। चूंकि गोइदो राष्ट्रीय संसद के
अध्यक्ष हैं, इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई करना आसान भी नहीं है।
वेनेजुएला की राजनीतिक
उठा-पटक का असर पड़ोसी देशों पर भी पड़ता है। सन 2017 में पेरू की राजधानी लीमा
में 12 देशों के प्रतिनिधियों ने एक घोषणापत्र तैयार किया, जिसमें वेनेजुएला की
लोकतांत्रिक-व्यवस्था के भंग होने पर चिंता व्यक्त करते हुए वहाँ के राजनीतिक
कैदियों की रिहाई और स्वतंत्र चुनावों की माँग की गई थी। लीमा ग्रुप में
अर्जेंटीना, ब्राजील, कनाडा, चिली, कोलम्बिया, कोस्टारिका, ग्वाटेमाला, होंडुरास,
मैक्सिको, पनामा, पैराग्वे और पेरू मूल रूप से शामिल हुए थे। बाद में गयाना और
सेंट लूसिया भी इसमें शामिल हो गए। लीमा ग्रुप वेनेजुएला की संविधान सभा को भी
स्वीकार नहीं करता है।
ध्यान देने की बात है
कि वेनेजुएला में सन 2017 में संसद के समांतर एक संविधान सभा खड़ी दी गई है। वेनेजुएला
के वर्तमान स्थितियों का मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाते हुए पेरू
के प्रतिनिधि ने कहा कि हमारे देश में 7,00,000 शरणार्थी वेनेजुएला से आ चुके हैं।
इस संकट के लिए वहाँ की माडुरो सरकार जिम्मेदार है। निकोलस माडुरो को राष्ट्रपति के रूप में मान्यता देने वाले देशों की
संख्या कम होती जा रही है। जो देश खुलकर उनके पक्ष में सामने आए हैं उनमें
बोलीविया, चीन, क्यूबा, ईरान, निकरागुआ, रूस, सीरिया और तुर्की शामिल हैं।
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