कॉमन सभा में एक के बाद एक कोशिशों के बावजूद वह तरीका उभरकर नहीं आ रहा है, जिससे ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन का अलगाव ठीक-ठाक तरीके से हो सके। प्रधानमंत्री टेरेसा मे ने ईयू की सहमति से जो समझौता (ब्रेक्जिट) तैयार किया था, उसे और उसके बाद उसमें सुधार की कोशिशों को संसद बार-बार अस्वीकार करती चली गई, तो आखिरी उम्मीद सोमवार 1 अप्रैल की बैठक में थी, जिसमें कम से कम चार प्रस्ताव ऐसे थे, जिनमें आगे की राह बताई गई थी। यह बैठक भी व्यर्थ हुई। चारों में से एक को भी संसद ने स्वीकार नहीं किया। इनमें कस्टम यूनियन और नॉर्वे जैसी व्यवस्था, ब्रिटेन को सिंगल मार्केट (एक बाज़ार) में बरक़रार रखने पर भी मतदान हुआ, लेकिन किसी भी विकल्प को स्वीकृति नहीं मिली। यह मतदान क़ानूनन बाध्यकारी नहीं था। किसी प्रस्ताव को बहुमत मिल भी जाता तो सरकार उसे मानने के लिए बाध्य नहीं होती, पर उससे रास्ता खुलता।
जिस विकल्प पर निकटतम सहमति बनी, वह यह था कि ब्रिटेन ईयू की कस्टम्स यूनियन में बना रहे। यह प्रस्ताव भी तीन वोट से पराजित हो गया। जिस प्रस्ताव को सबसे ज्यादा वोट मिले, वह था कि इन प्रस्तावों पर जनमत संग्रह करा लिया जाए, पर वह भी 292 के मुकाबले 280 वोटों से गिर गया। सरकार इन दोनों ही प्रस्तावों से असहमत थी। ईयू से हटने के बाद ईयू की कस्टम्स यूनियन में बने रहने का मतलब था व्यापारिक समझौते करने की स्वतंत्रता को खोना। दूसरे प्रस्ताव का मतलब था कि 2016 के इस वायदे से मुकरना कि जनमत संग्रह का फैसला लागू होगा।
बगैर डील के ब्रेक्जिट!
संसद की इस बैठक के बाद ब्रिटेन के ब्रेक्जिट मंत्री स्टीवन बार्क्ले ने कहा कि अब स्थिति यह है कि ब्रिटेन 12 अप्रैल को बगैर किसी डील के ईयू से अलग हो जाएगा। यह बात सुनने में आसान लगता है, पर इसके साथ भारी जोखिम जुड़े हैं। इससे न केवल ब्रिटेन की बल्कि यूरोप के कई देशों की अर्थ-व्यवस्थाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इस गहमागहमी की वजह से पौंड स्टर्लिंग की कीमत गिरने लगी है।
तमाम कारखानों में काम रुका हुआ है, क्योंकि पता नहीं कि अब सप्लाई किस तरह होगी और टैक्स प्रणाली किस तरीके से काम करेगी। किसी समझौते के साथ अलगाव हुआ, तब तो व्यवस्थित तरीके से सब कुछ होने की उम्मीद है, पर यदि यह बगैर किसी डील के हुआ तो फिर अराजकता का बोलबाला होगा। बार्क्ले का कहना है कि प्रधानमंत्री शायद अब चौथी बार किसी डील की पेशकश करेंगी। हो सकता है कि इन पंक्तियों के छपने तक कोई चमत्कार हो जाए। सब चाहते हैं कि यह अलगाव 23 मई से होने वाले यूरोपीय संसद के चुनावों के पहले हो जाए। अंदेशा इस बात का भी है कि टेरेसा में की सरकार भी गिर सकती है।
इसके पहले शुक्रवार 29 मार्च को ब्रिटिश संसद ने यूरोपीय संघ से बिना किसी समझौते के अलग होने के सरकारी प्रस्ताव को तीसरी बार ख़ारिज कर दिया था। प्रधानमंत्री टेरीजा में की योजना के अनुसार 29 मार्च को यह अलगाव हो जाना चाहिए था। इसके लिए उन्होंने ईयू के साथ बातचीत करके अलग होने की औपचारिकता को पूरा करने के लिए एक समझौते का प्रस्ताव तैयार किया था, जिसे संसद ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने एक और प्रस्ताव पेश किया, जिसे भी स्वीकार नहीं किया गया।
विकल्प क्या हैं?
29 मार्च 2017 को ब्रिटेन की सरकार ने ईयू संधि के अनुच्छेद 50 को (यानी अलग होने की प्रक्रिया) 50 लागू किया था। इसके तहत ठीक दो साल बाद यानी 29 मार्च, 2019 को ब्रेक्ज़िट लागू होना था। इस दौरान प्रधानमंत्री ने यूरोपीय संघ के अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श के बाद एक समझौते का मसौदा (विद्ड्रॉल डील) तैयार किया। इसे मंज़ूरी दिलवाने वे संसद में गईं, जहाँ उसे एक बार नहीं तीन बार खारिज किया जा चुका है। इस दौरान सरकार ने यूरोपीय संघ से ब्रेक्जिट की तारीख आगे बढ़ाने की मांग की थी, जो यूरोपीय संघ ने मान ली, लेकिन अपनी कुछ शर्तों पर। यदि संसद इस डील को स्वीकार कर लेती, तो ब्रेक्जिट 22 मई को होगा और यदि स्वीकार नहीं करती, तो 12 अप्रैल को बगैर डील के ब्रिटेन अलग हो जाएगा। दोनों अलग हो जाएंगे, पर अलग होने की कोई प्रक्रिया तय नहीं होगी। यह परिस्थिति अराजकता की होगी।
युनाइटेड किंगडम के सामने अब तीन विकल्प हैं:
1. बगैर किसी डील के ब्रेक्जिट हो।
2. ब्रिटेन अनुच्छेद 50 के तहत संधि से अलग होने के अपने फैसले को रद्द करे या उसकी समय सीमा बढ़ाई जाए।
3. टेरेसा मे के प्रस्ताव को 12 अप्रैल के पहले स्वीकार करे।
इसके अलावा चौथी किसी भी स्थिति के लिए अब ईयू के 27 सदस्यों की अनुमति जरूरी होगी। इसके अलावा यदि ब्रेक्जिट नहीं हुआ, तो 23 मई को होने वाले यूरोपीय यूनियन की संसद के चुनाव में ब्रिटेन भी भाग लेगा। ब्रिटेन के इस अनिश्चय से पूरे यूरोप की व्यवस्था में अनिश्चय व्याप्त हो गया है। हाल संसद के स्पीकर जॉन बेर्को ने कहा था कि एक ही संसद में बार-बार खारिज किया जाने वाला प्रस्ताव नहीं रखा जा सकता। इससे सरकार को झटका लगा था। यूरोपीय संघ के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क का कहना है कि ब्रिटिश सरकार के पास चार विकल्प हैं। एक, डील के साथ अलग होना, दूसरा, बिना कोई डील के अलग होना, तीसरा, एक लम्बा स्थगन (यानी ब्रेक्जिट की कोई लम्बी तारीख तय कर दी जाए) और चौथा, धारा 50 को रद्द करना शामिल है। धारा 50 को रद्द करने का मतलब है ब्रेक्जिट को खारिज करना। यह बात जनमत संग्रह के फैसले के खिलाफ होगी।
अराजक अलगाव की ओर
सवाल है कि अब आगे क्या होगा? एक अप्रैल को ब्रिटिश संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ कॉमन्स की ब्रेक्जिट से जुड़े अन्य विकल्पों पर विचार करने के लिए बैठक होगी। इससे पहले 27 मार्च को भी हाउस ऑफ़ कॉमन्स ने ब्रेक्जिट को लेकर बैठक की थी। इसके बाद 29 मार्च की बैठक में इस प्रस्ताव को संसद ने तीसरी बार खारिज कर दिया। मई में यूरोपीय संसद के चुनाव होने हैं। यदि ब्रिटेन अलग नहीं हुआ, तो उसे इन चुनावों में हिस्सा लेना होगा। ऐसी परिस्थिति लगता यह है कि 12 अप्रैल तक संसद में आम सहमति नहीं बनी तो ब्रिटेन ख़ुद-ब-ख़ुद यूरोपीय यूनियन से बाहर हो जाएगा।
सरकार ब्रेक्जिट पर दोबारा जनमत संग्रह करवाने का भी फ़ैसला कर सकती है पर वह भी अपने आप नहीं हो सकता। उसके लिए भी संसद की अनुमति चाहिए। टेरीजा मे इस संभावना से इनकार कर चुकी हैं। उनका कहना है कि इसके लिए संसद के भीतर सहमति बना पाना काफ़ी मुश्किल होगा। अगर संसद ऐसा फैसला कर भी ले, तो भी जनमत संग्रह तत्काल नहीं हो सकता। इसके लिए चुनाव और जनमत संग्रह एक्ट-2000 के नियमों का पालन करना होगा। इस मुद्दे पर देश में वक़्त से पहले चुनाव कराए जा सकते हैं। यह काम भी प्रधानमंत्री अपनी इच्छा से नहीं करा सकतीं। इसके लिए उन्हें संसद में दो तिहाई सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी।
फिक्स्ड टर्म पार्लियामेंट एक्ट 2011 के तहत, यूके के आम चुनाव केवल हर पांच साल में होने चाहिए। जिसके मुताबिक अगले चुनाव 2022 में होने हैं। इस साल जनवरी में ब्रिटेन की सरकार के ख़िलाफ़ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, पर वह प्रस्ताव 306 के मुकाबले 325 वोटों से गिर गया। टेरीजा मे ने पहले ही कहा है कि संसद मेरे ब्रेक्जिट डील को पास कर दे, तो मैं इस्तीफा दे दूँगी। पर उनके इस्तीफे से समस्या का समाधान नहीं होगा।
कहाँ तो वे ब्रिटेन को ईयू से बाहर निकालने के भगीरथ प्रयास में जुटी हैं और कहाँ उनके बाहर जाने का रास्ता तैयार होने लगा है। सच है कि ब्रेक्जिट ने टेरीजा मे की राजनीतिक शक्ति को काफी क्षीण कर दिया है। दो साल पहले वे अपराजेय नेता के रूप में उभरी थीं और आज वे निस्सहाय नजर आ रहीं हैं। समस्या यह है कि सुव्यवस्थित तरीके से ब्रेक्जिट किस प्रकार हो। पर उस सुव्यवस्था का कोई ऐसा बिन्दु तैयार नहीं हो पा रहा है, जिसपर सर्वानुमति भी हो।
Box
ब्रेक्जिट कहाँ से कहाँ
23 जून, 2016: यूके में हुए जनमत संग्रह में 51.9 फीसदी वोटरों ने ईयू से हटने के पक्ष में फैसला सुनाया।
24 जून, 2016: डेविड केमरन ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया।
13 जुलाई, 2016: टेरेसा में ने सरकार बनाने के लिए महारानी के निमंत्रण को स्वीकार किया।
26 जनवरी, 2017: संधि के अनुच्छेद 50 के तहत ईयू से हटने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री को अधिकृत करने का विधेयक सरकार ने संसद में पेश किया।
16 मार्च, 2017: बिल को महारानी की स्वीकृति मिली।
29 मार्च, 2017: प्रधानमंत्री टेरेसा का पत्र यूरोपीय कौंसिल के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क को सौंपा गया, जिसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 50 की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जिसकी अवधि दो वर्ष है। यानी कि यूके 29 मार्च, 2019 को ईयू से हट जाएगा।
19 जून, 2017: ब्रेक्जिट पर विमर्श शुरू।
14 नवम्बर, 2018: टेरेसा मे और ईयू के बीच जिस ब्रेक्जिट समझौते पर सहमति हुई, उसका मसौदा प्रकाशित।
25 नवम्बर, 2018: ईयू के 27 सदस्यों ने मसौदे को स्वीकार किया।
15 जनवरी, 2019: ब्रिटिश संसद ने ब्रेक्जिट समझौते को 202 के मुकाबले 432 वोटों से अस्वीकार किया।
12 मार्च, 2019: ब्रेक्जिट समझौते पर दूसरी बार हुए मतदान में प्रस्ताव 242 के मुकाबले 391 वोटों से पराजित।
14 मार्च, 2019: अनुच्छेद 50 की अवधि बढ़ाने का सरकारी प्रस्ताव 202 के मुकाबले 412 वोट से पास।
20 मार्च, 2019: प्रधानमंत्री टेरेसा में ने ईयू से आग्रह किया कि अनुच्छेद 50 की अवधि 30 जून, 2019 तक बढ़ा दी जाए।
21 मार्च, 2019: यूरोपीय कौंसिल के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने कहा कि यदि ब्रेक्जिट प्रस्ताव ब्रिटिश संसद 29 मार्च तक पास कर दे, तो ईयू अनुच्छेद 50 की अवधि 22 मई तक बढ़ा देगा। यदि प्रस्ताव पास नहीं हुआ, तो यूके को 12 अप्रैल तक बताना होगा कि अब क्या हो।
21 मार्च, 2019: संसद में ब्रेक्जिट प्रस्ताव तीसरी बार 286 के मुकाबले 344 वोटों से परास्त। ईयू से हटने की पूर्व निर्धारित तारीख निकल गई।
1 अप्रैल, 2019: संसद में रखे गए चार वैकल्पिक प्रस्ताव नामंजूर।
8 अप्रैल, 2019: ब्रिटिश सरकार को ‘ब्रेक्जिट प्लान बी’ पेश करना है, ताकि ईयू के सदस्य देशों के आपातकालीन शिखर में अनुच्छेद 50 की तिथि को 22 मई और यूरोपीय संसद के 23 मई को होने वाले चुनावों के आगे खिसकाया जा सके।
10 अप्रैल, 2019: ईयू के सदस्य देशों का आपातकालीन ब्रेक्जिट शिखर सम्मेलन।
12 अप्रैल, 2019: अनुच्छेद 50 की अवधि की समाप्ति।
23 से 26 मई, 2019: यूरोपीय संसद के चुनाव।
जिस विकल्प पर निकटतम सहमति बनी, वह यह था कि ब्रिटेन ईयू की कस्टम्स यूनियन में बना रहे। यह प्रस्ताव भी तीन वोट से पराजित हो गया। जिस प्रस्ताव को सबसे ज्यादा वोट मिले, वह था कि इन प्रस्तावों पर जनमत संग्रह करा लिया जाए, पर वह भी 292 के मुकाबले 280 वोटों से गिर गया। सरकार इन दोनों ही प्रस्तावों से असहमत थी। ईयू से हटने के बाद ईयू की कस्टम्स यूनियन में बने रहने का मतलब था व्यापारिक समझौते करने की स्वतंत्रता को खोना। दूसरे प्रस्ताव का मतलब था कि 2016 के इस वायदे से मुकरना कि जनमत संग्रह का फैसला लागू होगा।
बगैर डील के ब्रेक्जिट!
संसद की इस बैठक के बाद ब्रिटेन के ब्रेक्जिट मंत्री स्टीवन बार्क्ले ने कहा कि अब स्थिति यह है कि ब्रिटेन 12 अप्रैल को बगैर किसी डील के ईयू से अलग हो जाएगा। यह बात सुनने में आसान लगता है, पर इसके साथ भारी जोखिम जुड़े हैं। इससे न केवल ब्रिटेन की बल्कि यूरोप के कई देशों की अर्थ-व्यवस्थाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इस गहमागहमी की वजह से पौंड स्टर्लिंग की कीमत गिरने लगी है।
तमाम कारखानों में काम रुका हुआ है, क्योंकि पता नहीं कि अब सप्लाई किस तरह होगी और टैक्स प्रणाली किस तरीके से काम करेगी। किसी समझौते के साथ अलगाव हुआ, तब तो व्यवस्थित तरीके से सब कुछ होने की उम्मीद है, पर यदि यह बगैर किसी डील के हुआ तो फिर अराजकता का बोलबाला होगा। बार्क्ले का कहना है कि प्रधानमंत्री शायद अब चौथी बार किसी डील की पेशकश करेंगी। हो सकता है कि इन पंक्तियों के छपने तक कोई चमत्कार हो जाए। सब चाहते हैं कि यह अलगाव 23 मई से होने वाले यूरोपीय संसद के चुनावों के पहले हो जाए। अंदेशा इस बात का भी है कि टेरेसा में की सरकार भी गिर सकती है।
इसके पहले शुक्रवार 29 मार्च को ब्रिटिश संसद ने यूरोपीय संघ से बिना किसी समझौते के अलग होने के सरकारी प्रस्ताव को तीसरी बार ख़ारिज कर दिया था। प्रधानमंत्री टेरीजा में की योजना के अनुसार 29 मार्च को यह अलगाव हो जाना चाहिए था। इसके लिए उन्होंने ईयू के साथ बातचीत करके अलग होने की औपचारिकता को पूरा करने के लिए एक समझौते का प्रस्ताव तैयार किया था, जिसे संसद ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने एक और प्रस्ताव पेश किया, जिसे भी स्वीकार नहीं किया गया।
विकल्प क्या हैं?
29 मार्च 2017 को ब्रिटेन की सरकार ने ईयू संधि के अनुच्छेद 50 को (यानी अलग होने की प्रक्रिया) 50 लागू किया था। इसके तहत ठीक दो साल बाद यानी 29 मार्च, 2019 को ब्रेक्ज़िट लागू होना था। इस दौरान प्रधानमंत्री ने यूरोपीय संघ के अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श के बाद एक समझौते का मसौदा (विद्ड्रॉल डील) तैयार किया। इसे मंज़ूरी दिलवाने वे संसद में गईं, जहाँ उसे एक बार नहीं तीन बार खारिज किया जा चुका है। इस दौरान सरकार ने यूरोपीय संघ से ब्रेक्जिट की तारीख आगे बढ़ाने की मांग की थी, जो यूरोपीय संघ ने मान ली, लेकिन अपनी कुछ शर्तों पर। यदि संसद इस डील को स्वीकार कर लेती, तो ब्रेक्जिट 22 मई को होगा और यदि स्वीकार नहीं करती, तो 12 अप्रैल को बगैर डील के ब्रिटेन अलग हो जाएगा। दोनों अलग हो जाएंगे, पर अलग होने की कोई प्रक्रिया तय नहीं होगी। यह परिस्थिति अराजकता की होगी।
युनाइटेड किंगडम के सामने अब तीन विकल्प हैं:
1. बगैर किसी डील के ब्रेक्जिट हो।
2. ब्रिटेन अनुच्छेद 50 के तहत संधि से अलग होने के अपने फैसले को रद्द करे या उसकी समय सीमा बढ़ाई जाए।
3. टेरेसा मे के प्रस्ताव को 12 अप्रैल के पहले स्वीकार करे।
इसके अलावा चौथी किसी भी स्थिति के लिए अब ईयू के 27 सदस्यों की अनुमति जरूरी होगी। इसके अलावा यदि ब्रेक्जिट नहीं हुआ, तो 23 मई को होने वाले यूरोपीय यूनियन की संसद के चुनाव में ब्रिटेन भी भाग लेगा। ब्रिटेन के इस अनिश्चय से पूरे यूरोप की व्यवस्था में अनिश्चय व्याप्त हो गया है। हाल संसद के स्पीकर जॉन बेर्को ने कहा था कि एक ही संसद में बार-बार खारिज किया जाने वाला प्रस्ताव नहीं रखा जा सकता। इससे सरकार को झटका लगा था। यूरोपीय संघ के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क का कहना है कि ब्रिटिश सरकार के पास चार विकल्प हैं। एक, डील के साथ अलग होना, दूसरा, बिना कोई डील के अलग होना, तीसरा, एक लम्बा स्थगन (यानी ब्रेक्जिट की कोई लम्बी तारीख तय कर दी जाए) और चौथा, धारा 50 को रद्द करना शामिल है। धारा 50 को रद्द करने का मतलब है ब्रेक्जिट को खारिज करना। यह बात जनमत संग्रह के फैसले के खिलाफ होगी।
अराजक अलगाव की ओर
सवाल है कि अब आगे क्या होगा? एक अप्रैल को ब्रिटिश संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ कॉमन्स की ब्रेक्जिट से जुड़े अन्य विकल्पों पर विचार करने के लिए बैठक होगी। इससे पहले 27 मार्च को भी हाउस ऑफ़ कॉमन्स ने ब्रेक्जिट को लेकर बैठक की थी। इसके बाद 29 मार्च की बैठक में इस प्रस्ताव को संसद ने तीसरी बार खारिज कर दिया। मई में यूरोपीय संसद के चुनाव होने हैं। यदि ब्रिटेन अलग नहीं हुआ, तो उसे इन चुनावों में हिस्सा लेना होगा। ऐसी परिस्थिति लगता यह है कि 12 अप्रैल तक संसद में आम सहमति नहीं बनी तो ब्रिटेन ख़ुद-ब-ख़ुद यूरोपीय यूनियन से बाहर हो जाएगा।
सरकार ब्रेक्जिट पर दोबारा जनमत संग्रह करवाने का भी फ़ैसला कर सकती है पर वह भी अपने आप नहीं हो सकता। उसके लिए भी संसद की अनुमति चाहिए। टेरीजा मे इस संभावना से इनकार कर चुकी हैं। उनका कहना है कि इसके लिए संसद के भीतर सहमति बना पाना काफ़ी मुश्किल होगा। अगर संसद ऐसा फैसला कर भी ले, तो भी जनमत संग्रह तत्काल नहीं हो सकता। इसके लिए चुनाव और जनमत संग्रह एक्ट-2000 के नियमों का पालन करना होगा। इस मुद्दे पर देश में वक़्त से पहले चुनाव कराए जा सकते हैं। यह काम भी प्रधानमंत्री अपनी इच्छा से नहीं करा सकतीं। इसके लिए उन्हें संसद में दो तिहाई सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी।
फिक्स्ड टर्म पार्लियामेंट एक्ट 2011 के तहत, यूके के आम चुनाव केवल हर पांच साल में होने चाहिए। जिसके मुताबिक अगले चुनाव 2022 में होने हैं। इस साल जनवरी में ब्रिटेन की सरकार के ख़िलाफ़ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, पर वह प्रस्ताव 306 के मुकाबले 325 वोटों से गिर गया। टेरीजा मे ने पहले ही कहा है कि संसद मेरे ब्रेक्जिट डील को पास कर दे, तो मैं इस्तीफा दे दूँगी। पर उनके इस्तीफे से समस्या का समाधान नहीं होगा।
कहाँ तो वे ब्रिटेन को ईयू से बाहर निकालने के भगीरथ प्रयास में जुटी हैं और कहाँ उनके बाहर जाने का रास्ता तैयार होने लगा है। सच है कि ब्रेक्जिट ने टेरीजा मे की राजनीतिक शक्ति को काफी क्षीण कर दिया है। दो साल पहले वे अपराजेय नेता के रूप में उभरी थीं और आज वे निस्सहाय नजर आ रहीं हैं। समस्या यह है कि सुव्यवस्थित तरीके से ब्रेक्जिट किस प्रकार हो। पर उस सुव्यवस्था का कोई ऐसा बिन्दु तैयार नहीं हो पा रहा है, जिसपर सर्वानुमति भी हो।
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ब्रेक्जिट कहाँ से कहाँ
23 जून, 2016: यूके में हुए जनमत संग्रह में 51.9 फीसदी वोटरों ने ईयू से हटने के पक्ष में फैसला सुनाया।
24 जून, 2016: डेविड केमरन ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया।
13 जुलाई, 2016: टेरेसा में ने सरकार बनाने के लिए महारानी के निमंत्रण को स्वीकार किया।
26 जनवरी, 2017: संधि के अनुच्छेद 50 के तहत ईयू से हटने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री को अधिकृत करने का विधेयक सरकार ने संसद में पेश किया।
16 मार्च, 2017: बिल को महारानी की स्वीकृति मिली।
29 मार्च, 2017: प्रधानमंत्री टेरेसा का पत्र यूरोपीय कौंसिल के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क को सौंपा गया, जिसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 50 की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जिसकी अवधि दो वर्ष है। यानी कि यूके 29 मार्च, 2019 को ईयू से हट जाएगा।
19 जून, 2017: ब्रेक्जिट पर विमर्श शुरू।
14 नवम्बर, 2018: टेरेसा मे और ईयू के बीच जिस ब्रेक्जिट समझौते पर सहमति हुई, उसका मसौदा प्रकाशित।
25 नवम्बर, 2018: ईयू के 27 सदस्यों ने मसौदे को स्वीकार किया।
15 जनवरी, 2019: ब्रिटिश संसद ने ब्रेक्जिट समझौते को 202 के मुकाबले 432 वोटों से अस्वीकार किया।
12 मार्च, 2019: ब्रेक्जिट समझौते पर दूसरी बार हुए मतदान में प्रस्ताव 242 के मुकाबले 391 वोटों से पराजित।
14 मार्च, 2019: अनुच्छेद 50 की अवधि बढ़ाने का सरकारी प्रस्ताव 202 के मुकाबले 412 वोट से पास।
20 मार्च, 2019: प्रधानमंत्री टेरेसा में ने ईयू से आग्रह किया कि अनुच्छेद 50 की अवधि 30 जून, 2019 तक बढ़ा दी जाए।
21 मार्च, 2019: यूरोपीय कौंसिल के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने कहा कि यदि ब्रेक्जिट प्रस्ताव ब्रिटिश संसद 29 मार्च तक पास कर दे, तो ईयू अनुच्छेद 50 की अवधि 22 मई तक बढ़ा देगा। यदि प्रस्ताव पास नहीं हुआ, तो यूके को 12 अप्रैल तक बताना होगा कि अब क्या हो।
21 मार्च, 2019: संसद में ब्रेक्जिट प्रस्ताव तीसरी बार 286 के मुकाबले 344 वोटों से परास्त। ईयू से हटने की पूर्व निर्धारित तारीख निकल गई।
1 अप्रैल, 2019: संसद में रखे गए चार वैकल्पिक प्रस्ताव नामंजूर।
8 अप्रैल, 2019: ब्रिटिश सरकार को ‘ब्रेक्जिट प्लान बी’ पेश करना है, ताकि ईयू के सदस्य देशों के आपातकालीन शिखर में अनुच्छेद 50 की तिथि को 22 मई और यूरोपीय संसद के 23 मई को होने वाले चुनावों के आगे खिसकाया जा सके।
10 अप्रैल, 2019: ईयू के सदस्य देशों का आपातकालीन ब्रेक्जिट शिखर सम्मेलन।
12 अप्रैल, 2019: अनुच्छेद 50 की अवधि की समाप्ति।
23 से 26 मई, 2019: यूरोपीय संसद के चुनाव।
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